अमरीश पुरी कैसे बने मोगैम्बो ऑफ इंडिया? जानिए उनकी जिंदगी के कुछ रोचक किस्से

By Ek Baat Bata | Mar 28, 2020

एक बार हॉलीवुड के महान निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग ने फिल्म जगत के मशहूर अभिनेता अपनी सदी के सबसे बड़े खलनायक कहे जाने वाले अमरीश पुरी के बारे में कहा था, “अमरीश मेरे पसंदीदा खलनायक हैं ना कभी दुनिया ने इनके जैसा देखा होगा और न देखेगी"। उस दौरान भारत के सबसे प्रतिष्ठित सितारों में से एक थे अमरीश पुरी, जो अपने मोगैम्बो वाले किरदार के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते थे। 500 से अधिक फिल्में कर चुके अमरीश पुरी ने अपनी जिंदगी में कई अहम और दिलचस्प रोल किए जैसे दामिनी में बैरिस्टर चड्डा, करण अर्जुन में ठाकुर दुर्जन सिंह, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में चौधरी बलदेव सिंह

अमरीश लाल पुरी का जन्म 22 जून 1932  में पंजाब के नवांशहर में हुआ था। उनके  पिता और माता का नाम लाला निहाल चंद और वेद कौर था। वह चार भाई-बहन थे, बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी (वे दोनों भी अभिनेता थे) बड़ी बहन चंद्रकांता और एक छोटा भाई हरीश पुरी।

शिक्षा और थिएटर की शुरुआत

B.M कॉलेज, शिमला, हिमाचल प्रदेश से स्नातक करने के बाद, पुरी ग्लैमर की दुनिया में अपनी किस्मत आजमाने के लिए बॉम्बे चले गए। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की और पहली बार मुंबई के पृथ्वी थिएटर में अभिनय किया।

व्यक्तिगत  जीवन

अमरीश पुरी ने 1959 में उर्मिला दिवेकर के साथ वडाला के श्री कृष्ण मंदिर में शादी के बंधन में बंधे। उनके दो बच्चे हैं बेटी नम्रता और बेटा राजीव। अपनी आत्मकथा में पुरी ने कहा कि उर्मिला को पहली नजर में देखते ही उन्हें प्यार हो गया था, लेकिन उन्हें उससे बात करने में 6 महीने लग गए तब जाकर 4 साल बाद उन दोनों की शादी हुई

मूवी कैरियर की शुरुआत

1954 में मुख्य भूमिका के लिए स्क्रीन टेस्ट में असफल होने के बाद अमरीश पूरी को कर्मचारी राज्य बीमा निगम श्रम और रोजगार मंत्रालय के साथ एक नौकरी मिली। उसी समय उन्होंने सत्यदेव दुबे द्वारा लिखित नाटकों में पृथ्वी थिएटर में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। अंततः उन्हें एक मंच अभिनेता के रूप में जाना गया। पुरी ने हिंदी, कन्नड़, मराठी, हॉलीवुड, पंजाबी, मलयालम, तेलुगु और तमिल फिल्मों में काम किया। हालांकि वे कई क्षेत्रीय फिल्मों में सफल रहे, लेकिन उन्हें बॉलीवुड सिनेमा में अपने काम के लिए जाना जाता है।

उन्हें पहली बार ब्लॉकबस्टर फिल्म 'हम पंछी' में मुख्य प्रतिद्वंद्वी वीर प्रताप सिंह के रूप में देखा गया था। इसके बाद अमरीश पुरी ने बॉलीवुड उद्योग में खलनायक के रूप में खुद को स्थापित किया। उन्होंने नसीब (1981), विधाता (1982), शक्ति (1982), अर्ध सत्य (1983), कुली (1983) और मेरी जंग (1985) जैसी फिल्मों में सराहनीय प्रदर्शन किए 1987 में अमरीश पुरी ने शेखर कपूर के 'मिस्टर इंडिया' में अपना सबसे यादगार अभिनय दिया मोगैम्बो का जिसने उनके पूरे करियर को परिभाषित किया जिसके बाद उन्हें भारत के मोगैम्बो की उपाधि मिली। उनका संवाद "मोगैम्बो खुश हुआ" आज तक बॉलीवुड में सबसे प्रसिद्ध उद्धरणों में से एक है और उनके चरित्र को भारतीय सिनेमा के इतिहास के सर्वश्रेष्ठ खलनायकों में से एक माना जाता है।

बॉलीवुड के बाद अमरीश पुरी ने हॉलीवुड में भी अपने पैर जमाना शुरू किए। पुरी ने रिचर्ड एटनबरो की जीवनी पर आधारित फिल्म गांधी (1982) से हॉलीवुड में भी शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने मुख्य खलनायक मोला राम के रूप में स्टीवन स्पीलबर्ग की साहसिक फिल्म इंडियाना जोन्स और डूम के मंदिर में अभिनय किया। अपनी भूमिका के लिए उन्हें अपना सिर मुंडवाना पड़ा। इस किरदार का उन पर ऐसा प्रभाव ऐसा प्रभाव पड़ा कि अमरीश पुरी ने अपनी पूरी जिंदगी में गंजे बने रहने का फैसला किया। उनकी अद्वितीय बैरिटोन आवाज और गज़ब के व्यक्तित्व ने उन्हें अपने कई समकालीनों जैसे दलीप ताहिल, अनुपम खेर और कुलभूषण खरबंदा से अलग बनाया | 

1995 में अमरीश पुरी ने दो सुपर हिट  फिल्मों में अभिनय किया पहला राकेश रोशन की एक्शन ड्रामा फिल्म करण अर्जुन में और दूसरा आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में बनी फिल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में जो पर्दे पर सुपरहिट रही रही। इसके बाद उन्होंने दामिनी (1993), घटक (1996), विराट (1997), परदेस (1997), कोयला (1997), चाइना गेट (1998), चाची 420 (1998), ताल (1999) और बालशाह जैसी फिल्मों में अभिनय किया। 

 कौन-कौन से पुरस्कार से सम्मानित हुए
 
अमरीश पुरी ने अपनी जीवनी में कई सारे पुरस्कार जीते पहली बार 1968 में महाराष्ट्र राज्य नाटक  से सम्मानित हुए
1979 में रंगमंच के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
1986: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए फिल्मफेयर अवार्ड, फिल्म- मेरि जंग
1991: महाराष्ट्र राज्य गौरव पुरस्कार फिल्म- घातक 1997: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए स्टार स्क्रीन अवार्ड -  घातक
1998: फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार, फिल्म-  विरासत
1998: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए स्टार स्क्रीन अवार्ड -  विरासत

 कैसे हुई मृत्यु?

पुरी एक दुर्लभ प्रकार के रक्त कैंसर मायलोइड्सप्लास्टिक सिंड्रोम से पीड़ित थे। 27 दिसंबर 2004 को हिंदुजा अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनकी हालत  को देखते हुए मस्तिष्क की सर्जरी हुई थी | फिर वह कोमा में चले गए और 22 जनवरी 2005 को सुबह तकरीबन 7:00 बजे उन्होंने आखिरी बार सांस ली।