लड़कों की परवरिश करते वक्त रखें इन बातों का ख्याल ताकि वे बन पाएं इमोशनली स्ट्रॉन्ग

By Ek Baat Bata | Oct 27, 2020

"बॉयज़ डोंट क्राई..लड़के रोते नहीं हैं" आपने भी यह कभी ना कभी ये शब्द किसी न किसी से जरूर सुने होंगे।  दरअसल, हमारे समाज में पुरुष होने का मतलब ही यही है कि आपको हर वक़्त स्ट्रॉन्ग रहना है और हर परेशानी का सामना बिना डरे या कमजोर पड़े करना है। लेकिन कहीं ना कहीं हमारी इस सोच का असर हमारे बच्चे पर गलत तरीके से होता है। हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जहाँ लड़कों को अपनी फीलिंग्स दिखने की आजादी नहीं मिलती है। हम अक्सर लड़कियों की सही परवरिश बातें करते हैं लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि लड़कियों के साथ-साथ लड़कों की सही परवरिश भी बहुत जरूरी है।  जहाँ हर माँ-बाप को अपनी बेटी की ऐसी परवरिश करनी चाहिए जिससे वह सशक्त बन सके और हर चुनौती का डट कर सामना कर सके, वहीं लड़कों की परवरिश भी ऐसी होनी चाहिए कि वे बिना किसी झिझक के अपनी फीलिंग्स शेयर कर सकें। हर माँ-बाप अपने बेटे को इमोशनल तौर पर स्ट्रॉन्ग बनाना चाहते हैं लेकिन अक्सर हमारी रूढ़िवादी सोच ही लड़कों को कमजोर बना देती है।  लड़कों की परवरिश इस तरह की जाती है कि चाहे कितना भी दुःख क्यों ना हो उन्हें ना कभी कमजोर दिखना है और ना कभी रोना नहीं है।  अक्सर यह रूढ़ियाँ लड़कों के लिए काफी क्रूर भी साबित होती हैं इसलिए यह बहुत जरूरी है कि लड़कों को भी अपनी फीलिंग्स दिखाने में कोई शर्म या झिझक महसूस ना हो।  

अपने डर और निराशाओं के बारे में बात करें
पुरूषों पर हमेशा इस बात का दबाव रहता है कि उन्हें हर वक्त आत्मविश्वास और नियंत्रण के साथ जीना है।  यह उम्मीद की जाती है कि उन्हें किसी भी स्थिति में कमजोर नहीं पड़ना है।  हम अपने घरों में और आस-पास भी यही देखते-सुनते हैं कि लड़के स्ट्रॉन्ग होते हैं, वे किसी भी कठिनाई से घबराते नहीं हैं।  इन सभी रूढ़ियाँ को देखने-सुनने के बाद बच्चे पर इस बात का दबाव बन जाता है कि उन्हें कभी भी कमजोर नहीं पड़ना है।  हर पिता को चाहिए कि वे अपने बेटे को से अपने डर, चिंताएं, निराशाएं और अनुभव बाँटें और उसे समझाए कि वे अपनी भावनाओं को खुल कर व्यक्त कर सकता है।  
 
बच्चे को समझाएं कि फीलिंग्स दिखाना गलत नहीं है
अक्सर लड़के इस डर के कारण अपनी भावनाओं को किसी से शेयर नहीं कर पाते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि ऐसा करने से लोग उन्हें डरपोक या कमजोर समझेंगे।  माँ-बाप अपने बच्चे के साथ बात-चीत करके या उनके साथ वक्त बिताकर उन्हें यह सीखा सकते हैं कि पुरुष होने का सही मतलब क्या है।  उदाहरण के लिए, टीवी पर भी लड़कों को एक ख़ास ढंग से दिखाया जाता है।  फिल्मों और टीवी शो में मर्दानगी के बारे में कई रूढ़ियाँ दिखाई जाती हैं।  माँ-बाप अपने बच्चों के साथ टीवी देखते समय इन रूढ़ियों के बारे में बच्चों को समझा सकते हैं कि क्या सही है और क्या गलत।  हर माँ-बाप को अपने बच्चे को  यह समझना चाहिए कि उसे कभी भी अपनी फीलिंग्स दिखाने के लिए शर्मिंदा होने की या किसी को कुछ समझाने की जरूरत नहीं है।        

बच्चे को समझाएं कि मदद माँगने में कोई बुराई नहीं
आमतौर पर लड़कों को बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि उन्हें अपने दम पर ही ज़िंदगी में सब कुछ करना है।  यही वजह है कि लड़कों को किसी से मदद मांगने में शर्म महसूस होती है।  किसी भी बच्चे के लिए उसके माँ-बाप और घरवाले प्रेरणा का सबसे बड़ा स्त्रोत होते हैं।  बच्चा घर पर देखकर ही सब कुछ सीखता है इसलिए बच्चे के सामने ऐसा उदाहरण पेश करें कि उसे यह ,महसूस हो कि मदद माँगने में कोई बुराई नहीं है।  

पहले खुद की मदद करें
आप अपने बच्चे की सही परवरिश तभी कर पाएंगे जब आप खुद इन रूढ़ियों से प्रभावित ना हों।  अक्सर पुरुष अपनी मर्दांगी साबित करने के दबाव में जीते हैं।  अक्सर परिवार पालने की चिंता और डर में पुरुष स्ट्रेस या डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं।  कभी-कभी अपनी भावनाएँ किसी के साथ ना बाँट पाने के कारण पुरुष मानसिक तौर पर इतने ज़्यादा परेशान हो जाते हैं कि वे हिंसक हो जाते हैं।  ऐसी स्थिति में आपको अपने परिवार वालों, करीबी लोगों या किसी डॉक्टर से  मदद लेनी चाहिए।