महान महिला धावक पीटी उषा के जीवन से जुड़ी पूरी जानकारी जानिए यहां

By Ek Baat Bata | Oct 05, 2020

माना जाता है कि भारत पुरूष प्रधान समाज है और ऐसा मानकर या संबोधन देकर कहीं न कहीं भारतीय महिलाओं के सम्मान को कम किया जाता है अथवा उनकी गरिमा को कम किया जाता है। लेकिन यकीन जानिए भारत में सशक्त महिलाओं की भी कमी नहीं है, जो भारत से निकलकर विश्व भर में अपना नाम रोशन कर रहीं हैं और करती आई हैं। 

भारत का मान बढ़ाने में महिलाओं की भागीदारी कतई कम नहीं है, इसीलिए आज हम इस लेख के माध्यम से आपसे एक ऐसी ही क्षमतावान् महिला खिलाड़ी की बात करने जा रहे हैं और उनकी क्षमताओं के बारे में विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं। पीटी उषा का नाम भारत ही नहीं अपितु विदेशों में भी विख्यात है। चलिए पीटी उषा के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और उनके जीवन के तमाम किस्सों से रुबरु होते हैं। 

पय्योली एक्सप्रेस के नाम से विख्यात पीटी उषा जब रनिंग ट्रैक पर दौड़ लगाती हैं तो देखने वालों को भी अचम्भा हो ही जाता है क्योंकि क्वीन ऑफ इंडियन ट्रैक उन्हें ऐसे ही नहीं कहा जाता बल्कि वो इस काबिल भी हैं। 

पीटी उषा का जन्म 
केरल के कोझिकोड जिले के पय्योली नामक स्थान में 27 जून 1964 को पीटी उषा का जन्म हुआ था। माता का नाम टीवी लक्ष्मी और पिता ई एम पैतल के घर पीटी उषा का जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम पिलावुलकांडी थेक्केपारंवलि है। मात्र 12 साल की उम्र से ही खेल के प्रति पीटी उषा का रूझान सब बच्चों से अलग रहता था। 

केरल के खेल अकादमी में पीटी उषा की एन्ट्री
दरअसल साल 1976 में केरल की सरकार ने महिला खेल अकादमी की शुरुआत की थी, जिसमें करीबन 40 महिलाओं को ट्रेनिंग के लिए चुना गया था। पहले कोच के रूप में ओ.एम. नम्बियार ने पीटी उषा को ट्रेनिंग देनी प्रारंभ की थी। नेशनल स्पोस्ट्स गेम्स चैम्पियनशिप में भाग लेकर पहली बार पीटी उषा के नाम का सितारा चमका वो भी मात्र 12 साल की उम्र में ये करिश्मा काबिल-ए-तारीफ था। 

पीटी उषा के करियर की शुरुआत
बतौर एथलीट के तौर पर पीटी उषा ने साल 1980 में पाकिस्तान के कराची में 'पाकिस्तान ओपन नेशनल मीट' से खेल की शुरुआत की जिसमें एक साथ 4 गोल्ड मेडल जीतकर पीटी उषा ने इतिहास रच दिया। मात्र 16 साल की उम्र में पीटी उषा ने कमाल कर दिखाया, यहीं से पीटी उषा ने अपने खेल जीवन की शुरुआत की लगातार ख्याति हासिल करती रहीं।
 
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में हिंदुस्तान का झंडा लहरा कर गोल्ड मेडल लाने वाली पीटी उषा ने भारत का सर गर्व से ऊंचा कर दिया था। 'वर्ल्ड जूनियर इनविटेशन मीट' में साल 1982 में पीटी ऊषा ने एक बार फिर 1 गोल्ड के साथ ही सिल्वर मेडल भी जीता। 100 मीटर और 200 मीटर की रेस में 2 सिल्वर मेडल 'दिल्ली एशियन गेम्स' में पीटी उषा ने जीते। 

कुवैत में एशियन ट्रेन कैंसिल चैंपियनशिप साल 1983 में 400 मीटर की रेस में पीटी ऊषा ने गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा था।

 लॉस एंजेल्स के ओलंपिक में चौथा स्थान हासिल कर पीटी उषा भारत की पहली महिला थीं जो फाइनल राउंड में पहुंची थीं। इस ओलंपिक में भले ही पीटी उषा ने जीत हासिल नहीं की लेकिन हार का अंतर बेहद ही करीब का रहा था।
 
साल 1985 में एशियन ट्रैक एंड फील्ड चैंपियनशिप में पीटी उषा ने 175 गोल्ड जीते थे वही एक पुरानी मेडल भी जीता था जकार्ता में हुए इस ओलंपिक में एक बार फिर पीटी उषा का कमाल दिखा था। साल 1988 में सियोल में संपन्न हुए एशियन गेम्स में 4 गोल्ड मेडल एक बार फिर पीटी ऊषा के खाते में आए थे।

साल 1989 में दिल्ली में आयोजित किए गए एशियन ट्रैक फेडरेशन मीट में 4 गोल्ड मेडल और 2 सिल्वर मेडल का खिताब पीटी उषा ने अपने नाम किया था। 
1990 में पीटी उषा ने बीजिंग में हुए एशियन गेम्स में हिस्सा लिया और इस इवेंट में 3 सिल्वर मेडल लेकर जीत हासिल की। 

जब पीटी उषा ने रचाई शादी 
बीजिंग एशियन गेम्स के बाद साल 1991 में पीटी ऊषा ने वी श्रीनिवासन से शादी शादी रचाते हुए खेल से किनारा कर लिया। इस दौरान होने एक बेटे को भी जन्म दिया। 

लेकिन एक बार फिर पीटी उषा ने साल 1998 में 34 साल की उम्र के बावजूद वापसी करते हुए 'एशियन ट्रैक फेडरेशन मीट' में हिस्सा लिया और ब्रॉन्ज मेडल का किताब 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में अपने नाम किया। आखिरकार साल 2000 में पीटी उषा ने एथलेटिक्स से पूर्णरूपेण संन्यास ले लिया।

पीटी उषा को मिले अवॉर्ड्स
साल 1984 में ही उत्कृष्ट प्रदर्शन और देश का नाम ऊंचा करने के लिए साथ ही खेल के प्रति उनकी भावना को देखते हुए 'अर्जुन अवार्ड' से सम्मानित किया गया था।
 
ठीक इसके अगले साल ही 1985 में 'पद्मश्री' से पीटी उषा को सम्मानित किया गया।
 
1985 में ही 'ग्रेटेस्ट वुमेन एथलीट' के पुरस्कार से पीटी उषा को नवाजा गया।

बेस्ट एथलीट के लिए 'वर्ल्ड ट्रॉफी' भी पीटी उषा ने अपने नाम की थी।
खेल से पूरी तरह ट्रैक चेंज करने वाली पीटी उषा अभी भी एथलीट स्कूल चलाती हैं और आने वाली यंग जनरेशन को सिखाने का प्रयास करती हैं। खेल के प्रति जिस तरह से अपने आप को पीटी उषा ने समर्पित किया है, उसी तरह आने वाली पीढ़ी को भी देश के लिए जीने और देश के लिए जीतने का सबक सिखाती हैं।