कभी जूते खरीदने के भी नहीं थे पैसे, हेप्टाथलन में स्वर्ण जीत रचा इतिहास, पढ़िए स्वप्ना बर्मन की कहानी

By Ek Baat Bata | Dec 30, 2020

स्वप्ना बर्मन का जन्म पश्चिम बंगाल के एक छोटे से कस्बे जलपैगुड़ी में 1996 हुआ था। स्वप्ना एक बेहद गरीब परिवार से आती हैं। उनके पिता रिक्शा चालक थे और माँ चाय के बाग़ान में दिहाड़ी मजदूर हैं। 2013 में एक एक्सीडेंट के बाद उनके पिता लकवा का शिकार हो गए और अभी तक बिस्तर पर ही पड़े हैं। आर्थिक तंगी के कारण स्वप्ना को आजीविका चलाने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। स्वप्ना ने 18वें एशियाई खेलों में महिलाओं की हेप्टाथलान स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर भारत को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया था।
 
स्वप्ना ने बचपन में ही अपनी प्रतिभा को पहचान लिया था। उन्होंने सात साल की उम्र से खेलना शुरू कर दिया था। शुरू से उनका रुझान दौड़ने और एथलेटिक्स की तरफ था। उन्होंने जलपैगुड़ी में अपने घर के पास ही स्कूल के मैदान में दौड़ना शुरू किया और कड़ी मेहनत की। बचपन में जब स्वप्ना अपनी ट्रेनिंग कर रही थीं तो उनकी माता अपने काम पर जाते हुए उन्हें मैदान में छोड़ देती थीं और शाम को काम से लौटते हुए उन्हें उसी मैदान से साथ लेते हुए घर आती थीं। एक इंटरव्यू में स्वप्ना के भाई ने बताया था कि जब स्वप्ना को हेप्टाथलॉन के बारे में पता चला तो उन्होंने पूरी लगन के साथ इसकी तैयारी शुरू कर दी थी।  

स्वप्ना ने स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद कोलकाता के चारुचंद्र कॉलेज में दाखिला लिया था। खबरों के मुताबिक जब स्वप्ना पहली बार उच्च कूद में प्रशिक्षण के लिए अपने कोच सुभाष सरकार के पास गईं, तो उन्हें अस्वीकार कर दिया गया था। वे अन्य खेलों के एथलीटों की भी तलाश कर रहे थे। स्वप्ना का उच्च-कूद प्रदर्शन शक्ति और बिना किसी ताकत के भरा हुआ था, जिससे कोच सुभाष सरकार ने अपना मन बदल लिया और स्वप्ना को प्रशिक्षण के लिए चुना।

साल 2014 में दक्षिण कोरिया के इंचियोन में आयोजित एशियाई खेलों  स्वप्ना ने 5वां स्थान हासिल किया था। उन्हें उनकी प्रतिभा की पहचान के लिए 2016 में 1।5 लाख की स्कॉलरशिप दी गई थी। इसके बाद 2017 में भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में आयोजित एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वप्ना को हेप्टाथलॉन में पहला स्थान मिला था। इसी साल उन्होंने पटियाला फेडरेशन कप में भी स्वर्ण पदक जीता था। साल 2018 में जकार्ता, इंडोनेशिया में आयोजित एशियाई खेलों में महिलाओं की हेप्टाथलॉन स्पर्धा (100 मीटर, हाई जंप, 200 मीटर, शॉट पुट, जेवलिन थ्रो, लॉन्ग जम्प और 800 मीटर) में स्वर्ण पदक अपने नाम कर स्वप्ना एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय हेप्टेथलीट बन गई थीं।

जलपैगुड़ी से जकार्ता तक का सफर आसान नहीं था। स्वप्ना ने तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए देश को स्वर्ण जिताया था। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से स्वप्ना को ना ही सही आहार मिल पाता था और ना ही उनके पास ट्रेनिंग के लिए पैसे थे। लेकिन स्वप्ना ने कभी हार नहीं मानी और अपनी राह में आने वाली सभी चुनौतियों का डटकर सामना किया। स्वप्ना के बचपन के कोच सुकांत सिन्हा ने एक इंटरव्यू में बताया था, "मैं 2006 से 2013 तक उनका कोच रहा। वह काफी गरीब परिवार से आती है और उसके लिए अपनी ट्रेनिंग का खर्च उठाना मुश्किल होता है। जब वह चौथी क्लास में थी, तब ही मैंने उसमें प्रतिभा देख ली थी। इसके बाद मैंने उसे ट्रेनिंग देना शुरू किया।"

एक समय ऐसा भी था जब स्वप्ना को अपने पैर के आकार के जूते ढूंढ़ने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था। दरअसल उनके दोनों पैरों में 6 उंगलियां हैं, जिसके कारण कोई भी जूता फिट नहीं बैठता था। पांव की अतिरिक्त चौड़ाई खेलों में उनकी लैंडिंग को मुश्किल बना देती है, जिसकी वजह से उनके जूते जल्दी फट जाते हैं। इस वजह से उन्हें अपने लिए स्पेशल जूते बनवाने पड़ते हैं जो काफी महंगे पड़ते हैं। स्वप्ना के पास जूते बनवाने के पैसे नहीं होते थे इसलिए उन्हें पैसे उधार लेने पड़ते थे। इतना ही नहीं जकार्ता में हेप्टेथलीट स्पर्धा से पहले स्वप्ना को दांत संक्रमण से जूझना पड़ा था। दाँत के दर्द को कम करने के लिए स्वप्ना ने दाएं गाल पर फीता बांध कर स्पर्धा में हिस्सा लिया था। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया था, "अपनी स्पर्धा से पहले मैं कुछ नहीं खा पाई थी। मैं इतना बीमार थी कि आपको बता नहीं सकती। मैं सिर्फ यह जानती थी कि मुझे जीतना है, क्योंकि मेरे सालों का संघर्ष इसी पर निर्भर था।" इस तरह से स्वप्ना ने तमाम बाधाओं को पार करते हुए एशियाई खेलों में सफलता प्राप्त की थी।