जानिए गर्भावस्था के दौरान निप्पल्स का रंग गहरा होना है कितना सही और कितना गलत

By Ek Baat Bata | Sep 19, 2020

महिला के जीवन में सबसे सुखद अनुभव होता है जब वह मां बनने वाली होती है। चाहे वह पहली बार मां बने या दूसरी बार उसकी खुशी और उसका अनुभव बहुत ही ज्यादा अच्छा होता है। जैसा कि सभी को पता है कि जब कोई भी महिला गर्भवती होती है या गर्भधारण करती है तो उसके शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं, शारीरिक और मानसिक रूप से उसके अंदर अलग-अलग तरह के बदलाव आते हैं। आपने अपने शरीर में भी कई सारे बदलाव देखे होंगे कई बार आपका पेट बढ़ने लगता है, आपका जी मिचलाने लगता है या पैरों में दर्द होने लगता है। कई बार आपको कमजोरी लगने लगती है। ऐसे बदलाव गर्भावस्था के दौरान काफी आम है। यह सभी बदलाव एक गर्भवती महिला के अंदर होते हैं। शारीरिक बदलाव के साथ साथ गर्भावस्था के दौरान महिला के अंदर मानसिक बदलाव भी काफी होते हैं जैसे कि उसका अलग-अलग चीजें खाने का मन करता है या फिर सिर में दर्द होता है या उसे लगेगा कि सारी चीजें उसके इच्छा के विरुद्ध हो रही हैं ।दूसरे शब्दों में कहें तो चिड़चिड़ापन होने लगता है। साथ ही गर्भावस्था के दौरान ज्यादातर महिलाएं मानसिक तनाव से भी जूझती है। डॉक्टर भी उन्हें सलाह देते हैं कि उन्हें गर्भावस्था के दौरान शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से स्वस्थ रहने की बहुत ज्यादा जरूरत है।गर्भावस्था के दौरान महिला के अंदर मानसिक बदलाव होना या फिर शारीरिक बदलाव होना बहुत ही आम बात होती है। उसके पति और परिवार वालों को उसकी स्थिति समझने चाहिए और उसका साथ देना चाहिए। यह सब तो मानसिक और शारीरिक कारण है जोकि आमतौर पर महिला खुद महसूस करती है साथ ही उसके आसपास के लोग भी उसके अंदर हो रहे बदलाव को देख सकते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि गर्भावस्था के दौरान सबसे ज्यादा प्रभाव आपके शरीर के स्तनों पर पड़ता है। जब भी कोई महिला गर्भवती होती है तो सबसे ज्यादा बदलाव उसके ब्रेस्ट यानी स्तनों पर होता है। प्रेगनेंसी के साथ साथ स्तनों का आकार भी बढ़ता है। साथ ही स्तनों के निप्पल के रंग में भी बदलाव आता है। कई महिलाओं के निप्पल का रंग गहरा हो जाता है तो कई महिलाओं के निप्पल का रंग हल्का हो जाता है। लेकिन ज़्यादातर महिलाएं इस बात पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती। शायद उन्हें पता भी नहीं लगता कि उनके शरीर में इस तरह के बदलाव भी हो रहे हैं। लेकिन यदि आप गर्भवती है या गर्भधारण करने वाले हैं तो आपको यह पता होना चाहिए कि निप्पल के रंग के बदलाव के कारण आपके स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है। क्या यह स्वास्थ्य के लिए सही है या फिर यह बदलाव स्वास्थ्य के लिए खराब है।

निपल्स डार्क होने के क्‍या कारण हैं?

जब महिला गर्भवती होती है तो उसके शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं। प्रेग्‍नेंसी के दौरान दो प्राइमरी हार्मोन्स प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन, अधिक मात्रा में स्रावित होते हैं। यह उस महिला के शरीर में स्तनों के अंदर हार्मोन दूध को स्रावित करते है और महिला के स्तनों को स्रावित के लिए तैयार करते हैं। साथ ही गर्भवती महिला के ब्रेस्‍ट का साइज भी बढ़ जाता है। इन हार्मोन अल क्रियाओं की वजह से महिला के स्तनों के निप्‍पल्‍स हाइपरपिगमेंटेड हो जाते हैं।इन सबके अलावा भी प्रेग्‍नेंसी के दौरान मुख्‍य रूप से हाई हार्मोनल परिवर्तन होते हैं। इसकी वजह से मेलेनिन का स्राव काफ़ी बढ़ जाता है जिसकी वजह से निप्पल्स का रंग गहरा हो जाता है या हम यह कहें कि इसके कारण ही त्वचा के रंग के अंदर बदलाव आता है। मेलेनिन न केवल निप्‍पल्‍स पर अधिक हाइपरपिगमेंटेशन होने की वजह होता है। बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है जैसे कि चेहरे, गर्दन और भुजाओं पर पड़ने वाले काले धब्‍बों का कारण भी यही होता है। ज्यादातर महिलाओं में डिलीवरी से कुछ हफ्ते बाद ही यह हाइपरपिगमेंटेड बदलाव हल्‍के पड़ने लगते हैं। हालांकि कुछ मामलों में यह हमेशा के लिए निशान छोड़ जाते हैं।

कई महिलाएं प्रेगनेंसी के दौरान त्वचा और निप्पल के दाग होने पर ट्रीटमेंट लेने की सोचती है। हालांकि, ऐसी अवस्था में मेडिकल ट्रीटमेंट लेने की कोई आवश्यकता नहीं होती। लेकिन डिलीवरी के 1 साल बाद भी यदि यह दाग दूर नहीं होते तो आपको किसी डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। यदि आप अपने बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराना पसंद करती हैं तो नेचुरल तरीके से लुप्त होने की प्रक्रिया थोड़ी धीमी हो जाती है जो बिल्‍कुल ठीक है। सिर्फ हाइपरपिगमेंटेशन के लिए ब्रेस्‍टफीडिंग से बचने की सलाह नहीं दी जाती है। ब्रेस्‍टफीडिंग यानी बच्चे को दूध पिलाना, बच्चे को फीडिंग कराने का या सबसे बढ़िया और प्राकृतिक तरीका है।