जानें प्रेगनेंसी में टीवीएस या एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड में से कौन से स्कैन से मिलती है गर्भ में पल रहे शिशु की सही जानकारी

By Ek Baat Bata | Sep 07, 2020

माँ बनना किसी भी महिला के लिए सबसे बड़ा सुख होता है। प्रेगनेंसी की खबर पक्की होते ही हर महिला मन में कई तरह के सपने बुनने लगती है लेकि साथ ही साथ उसके मन में कई तरह के डर भी पैदा होने लगते हैं। हर प्रेगनेंट  महिला को प्रेगनेंसी के दौरान कई बार अल्ट्रासाउंड टेस्ट कराना पड़ता है। अल्ट्रासाउंड के जरिए आपको पता चल पाता है कि आपके गर्भाशय में पल रहे शिशु का विकास सही तरह से हो रहा है या नहीं। जब आप अल्ट्रासाउंड के दौरान अपने अंदर पल रही नन्हीं सी जान के दिल को धड़कते हुए देखती हैं तो आपको अविस्मरणीय अनुभव होता है। अल्ट्रासाउंड प्रेगनेंसी का बहुत अहम हिस्सा है। इससे डॉक्टर्स को शिशु की असामन्यताओं का समय रहते पता लगाने में मदद मिलती है ताकि उसका निदान किया जा सके। हालांकि, ज्यादातर गर्भवती महिलाओं को इस बात को लेकर कंफ्यूजन रहती है कि प्रेग्नेंसी में कौन सा अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए और कब करवाना चाहिए। आज के इस लेख में हम आपको प्रेगनेंसी के दौरान किए जाने वाले  अल्ट्रासाउंड के दो प्रमुख प्रकारों के बारे में जानकारी देंगे -     

ट्रांसवेजाइनल स्कैन
गर्भवस्था के शुरूआती चरणों में डॉक्टर ट्रांसवेजाइनल स्कैन करवाने की सलाह देते है। इस परीक्षण से महिला के आंतरिक अंगों की छवियों को बनाने के लिए हाई फ्रिक्वेंसी साउंड का उपयोग किया जाता है। ट्रांसवेजाइनल स्कैन को एंडोवेजाइनल अल्ट्रासाउंड भी कहते हैं। इस परीक्षण की मदद से डॉक्टर्स गर्भवती महिला के प्रजनन अंगों जैसे गर्भाशय, अंडाशय, योनि, गर्भाशय ग्रीवा और फैलोपियन ट्यूब की जांच करते हैं। इस अल्ट्रासाउंड में डॉक्टर महिला की योनि में दो से तीन इंच की अल्ट्रासाउंड रॉड डालते हैं जिससे गर्भाशय के अंदर पल रहे शिशु की छवि बनाने में मदद मिलती है। 

टीवीएस गर्भवस्था के शुरूआती दिनों में किया जाता है। गर्भावस्था के शुरुआती हफ्तों में आपका शिशु काफी छोटा और पेट में नीचे की तरफ होता है। इसलिए पेट पर किए जाने वाले स्कैन में स्पष्ट दिखाई नहीं देता।  इसके अलावा जिन गर्भवती महिलाओं में मोटापे के कारण  शरीर में अत्यधिक फैट होता है उनका ऊपर से अल्ट्रासाउंड करने में बहुत दिक्कत आती है, ऐसी स्थिति में अंगों की जांच के लिए ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड किया जाता है। इस अल्ट्रासाउंड की मदद से डॉक्टर्स किसी भी असामान्यताओं या विसंगतियों को निर्धारित कर सकता है। यदि आपका योनि स्कैन हो रहा है तो इसके लिए आपका मूत्राशय खाली होना चाहिए। भरे मूत्राशय से शिशु की स्पष्ट तस्वीर पाना मुश्किल हो सकता है।

जब डॉक्टर 10 सप्ताह से पहले आपकी गर्भवस्था की जांच करना चाहते हों तो ऐसी स्थिति में टीवीएस करवाना होता है। इससे डॉक्टर गर्भवस्था के लगभग छठे हफ्ते में शिशु के दिल की धड़कन सुन पाते हैं। इससे डॉक्टर्स को यह पता चल पाता है कि शिशु गर्भाशय में सही स्थिति है या नहीं। इसके अलावा जिन महिलाओं का पहले गर्भपात या स्थानिक गर्भावस्था (एक्टोपिक प्रेग्नेंसी) का इतिहास रहा हो, उन्हें भी डॉक्टर टीवीएस करवाने की सलाह देते हैं। गर्भावस्था की पहली तिमाही में ट्रान्सवजाइनल अल्ट्रासाउंड की मदद से डॉक्टर इस बात का पता लगाते हैं कि आपके गर्भ में कितने बच्चे हैं। यदि गर्भवती महिला को रक्तस्त्राव या पेट के निचले हिस्से दर्द हो रहा हो तब भी डॉक्टर टीवीएस के जरिए महिला के प्रजनन अंगों की जांच करते हैं। टीवीएस के जरिए डॉक्टर्स को फाइब्रॉएड, सिस्ट, कैंसर, गर्भपात, लो लाइंग प्लेसेंटा, अस्थानिक गर्भावस्था और नियमित गर्भावस्था जैसी स्थितियों के बारे में समय रहते पता चल पाता है। 

एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड 
प्रेगनेंसी के आठवें या नौवें सप्ताह के बाद लगभग सारे स्कैन पेट के ऊपर से किए जाते हैं, इसे एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड भी कहते हैं। एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड  आमतौर पर भरे हुए मूत्राशय के साथ किया जाता है इसलिए डॉक्टर अल्ट्रासाउंड से पहले खूब सारा पानी पीने के लिए कहते हैं। गर्भवस्था की शुरुआत में पहले तिमाही में शिशु बहुत छोटा होता है और गर्भाशय भी पेट में काफी नीचे की तरफ होता है। अल्ट्रासाउंड के समय गर्भाशय को पेट में ऊपर की तरफ लाने के लिए मूत्राशय भरा हुआ होना चाहिए ताकि स्कैन में शिशु की बेहतर तस्वीर आ सके।

एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड करने के दौरान डॉक्टर गर्भवती महिला के पेट पर जेल लगते हैं और फिर हाथ से चलने वाले प्रोब या ट्रांसड्यूसर को पेट की त्वचा के ऊपर घुमाते हैं जिससे शिशु की स्पष्ट छवि मिलती है। इससे डॉक्टर को भ्रूण के विकास और लिंग के बारे में पता चलता है। एब्डोमेन अल्ट्रासाउंड से डॉक्टर्स पता लगा पाते हैं कि गर्भाशय में शिशु का विकास किस तरह से हो रहा है। इसके अलावा शिशु के आकार और उसके प्रमुख अंगों की जांच करके असामान्यताओं  के बारे में पता चलता है। 

किसी भी अल्ट्रासाउंड में 20-30 मिनट का समय लगता है। इसके लिए बेहतर होगा कि आप बिना असहज हुए अल्ट्रासाउंड करवाएं जिससे आपके शिशु की स्पष्ट तस्वीर कंप्यूटर पर दिख सके और उसके विकास के बारे में सही जानकारी मिल सके।