जब ए आर रहमान को पैसों की खातिर बेचने पड़े थे अपने म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स, इस वजह से अपनाया था इस्लाम

By Ek Baat Bata | Jan 05, 2022

बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक अपने संगीत का जादू बिखेर चुके ए आर रहमान  का नाम देश ही नहीं दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में शुमार है। ए आर रहमान का जन्म 6 जनवरी 1966 को चेन्नई में हुआ था। शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि उनका असली नाम दिलीप कुमार था। लेकिन एक सूफी संत के कहने पर उन्होंने इस्लाम कुबूल किया और अपना नाम बदल कर अल्लाह रक्खा रहमान रख लिया था। ए आर रहमान को संगीत अपने पिता से विरासत में मिला है। उनके पिता आर।के शेखर मलयाली फिल्मों से जुड़े थे। रहमान ने बचपन में संघर्षों का सामना करना पड़ा था। वे महज नौ साल के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। पिता के जाने के घर की आर्थिक स्थिति ऐसी हो गई थी पैसों की खातिर घर में रखे म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट तक बेचने पड़ गए थे।

ट्रिनिटी कॉलेज से मिली स्कॉलरशिप 
11 साल की उम्र में रहमान अपने बचपन के दोस्त शिवमणि के साथ 'रहमान बैंड रुट्स' में सिंथेसाइजर बजाने का काम करते थे। रहमान ने चेन्नई के मशहूर बैंड 'नेमेसिस एवेन्यू' की स्थापना में भी अहम योगदान दिया। रहमान पियानो, हारमोनयिम, गिटार भी बजा लेते थे। बैंड ग्रुप में ही काम करने के दौरान रहमान को लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज से स्कॉलरशिप मिली थी। उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज से पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में शिक्षा हासिल की है।

पहली फिल्म में मिला था 'फिल्म फेयर' पुरस्कार
ए आर रहमान ने 1991 में अपना खुद का म्यूजिक रिकॉर्ड करना शुरू किया था। रहमान को पहला ब्रेक 1992 में फिल्म निर्देशक मणि रत्नम ने अपनी फिल्म 'रोजा' में दिया था।  इस फिल्म का संगीत जबरदस्त हिट साबित हुआ और रहमान रातोंरात मशहूर हो गए। पहली ही फिल्म के लिए रहमान को फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया था।  

विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में शामिल 
ए आर रहमान का नाम दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में शामिल किया जाता है। उनके चाहने वाले दुनियाभर में हैं।  शायद यही वजह है कि दुनियाभर में उनके गानों की 200 करोड़ से भी अधिक रिकॉर्डिंग बिक चुकी है।  देश के 50वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 1997 में बनाया गया उनका अल्बम 'वंदे मातरम' सबसे ज्यादा भाषाओं में प्रस्तुत किया गया है।  इस गाने का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है।

नोबेल पीस प्राइज कंसर्ट में भी प्रस्तुति
​रहमान के गाए गीत 'दिल से', 'ख्वाजा मेरे ख्वाजा', 'जय हो' आदि भी खूब मशहूर हुए हैं। साल 2010 में रहमान ने नोबेल पीस प्राइज कंसर्ट में भी परफॉर्म  किया था।  रहमान ने 'बॉम्बे', 'रंगीला', 'दिल से', 'ताल', 'जींस', 'पुकार', 'फिजा', 'लगान', 'स्वदेस', 'जोधा-अकबर', 'युवराज', 'स्लमडॉग मिलेनियर' और 'मोहेंजो दारो' जैसी कई शानदार फिल्मों में संगीत दिया है। 

एक अच्छे पति और पिता 
​रहमान एक उम्दा संगीतकार होने के साथ-साथ रक अच्छे पति और पिता भी हैं। रहमान की शादी सायरा बानो से हुई है और उनके तीन बच्चे - बेटी खतीजा और रहीमा और बेटा अमीन हैं।

गोल्डन ग्लोब, ऑस्कर और ग्रैमी अवॉर्ड किए हैं अपने नाम 
साल 2000 में रहमान को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।  फिल्म 'स्लम डॉग मिलेनियर' गाने के लिए उन्हें  गोल्डन ग्लोब, ऑस्कर और ग्रैमी जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इस फिल्म का गाना 'जय हो' दुनियाभर में बहुत मशहूर हुआ था।   

6 राष्ट्रीय पुरस्कार और 15 फिल्मफेयर से सम्मानित 
रहमान को 6 राष्ट्रीय पुरस्कार, 15 फिल्मफेयर पुरस्कार और दक्षिण भारतीय फिल्मों में बेहतरीन संगीत देने के लिए 13 साउथ फिल्म फेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। फिल्म '127 आवर्स' के लिए रहमान को बाफ्टा पुरस्कार से नवाजा गया था।