अगर आप हैं प्रेग्नेंट तो जरुर पढ़ें यह लेख, मिलेगी हर आवश्यक जानकारी

By Ek Baat Bata | Dec 03, 2019

गर्भावस्था के चरण एवं लक्षण

गर्भावस्था किसी भी महिला के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। एक उम्र पर हर स्त्री को गर्भवती होने की चाह होती है। माँ बनने का सुखद एहसास उसे पूर्णता का अनुभव कराता है। साथ ही शरीर में हो रहे निरंतर बदलाव को लेकर उसका मन आशंकित भी रहता है। इसलिए गर्भावस्था के विभिन्न चरणों में शरीर में होने वाले बदलावों की जानकारी होना अति आवश्यक है जिससे नौ माह की यह अवधि सुगमता और तनाव रहित तरीके से व्यतीत हो सके। गर्भावस्था की सामान्य अवधि आमतौर पर लगभग नौ माह की होती है। प्रसव की अनुमानित तिथि की गणना स्त्री के आखिरी मासिक धर्म के आने की तारीख में नौ माह व सात दिन जोड़कर की जाती है। मगर प्रसव इस तिथि से थोड़ा पहले या बाद में, कभी भी हो सकता है।

गर्भधारण की प्रक्रिया में स्त्री के मासिक धर्म के लगभग 14वें दिन उसके अंडाशय से अंडाणु का उत्सर्ग होता है, जो पुरुष के शुक्राणु के संसर्ग में आकर निषेचित होता है और निषेचन के बाद भ्रूण के रूप में स्त्री के गर्भाशय में आकर गर्भाशय की दीवार पर चिपक जाता है। महिला के गर्भ में ही भ्रूण का पूर्ण विकास होता है। इस दौरान महिला के हार्मोन्स के स्तर में तेजी से बदलाव आते हैं और गर्भावस्था की पूरी अवधि में महिला के शरीर में विभिन्न बदलाव दिखाई देते हैं, जो निरंतर बदलते रहते हैं। बदलाव के इस प्रक्रिया को भली-भांति समझने के लिए भ्रूण बनने से लेकर पूर्ण विकसित शिशु बनने तक की नौ माह की गर्भावस्था की अवधि को तीन चरणो में बांटा जा सकता है :-

प्रथम तिमाही ( FIRST TRIMESTER )

गर्भावस्था की शुरुआत से प्रथम तीन माह तक, अर्थात पहले सप्ताह से 12 सप्ताह तक की अवधि को प्रथम तिमाही कहते है। यह गर्भावस्था का सबसे अहम चरण होता है क्योकि इस दौरान शरीर में हार्मोन्स के स्तर में लगातार बदलाव के साथ-साथ भ्रूण की कोशिकाओ में विभाजन के साथ भ्रूण का विकास तेजी से होता है और अंग निर्माण की प्रक्रिया शुरू होजाती है। इसलिए इस दौरान महिला को बहुत सावधानी बरतनी चाहिए अन्यथा इस तिमाही में गर्भपात का खतरा सबसे अधिक होता है। महिला को अपने शरीर में हो रहे बदलावों की जानकारी होना अति आवश्यक है, जिससे वह इन बदलावों को महसूस करके शुरुआती चरण में ही अपने खान-पान और जीवनशैली को नियंत्रित करके एहतियात बरत सके और चुनौती भरे इन महीनो और नए-नए बदलावों के साथ सामंजस्य बैठा सके। 

गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण:- गर्भावस्था के प्रारंभिक लक्षण प्रत्येक महिला में एक जैसे नही होते और शुरुआत में निरंतर बदलते रहते हैं। किसी महिला में ये लक्षण गर्भधारण के पहले हफ्ते से ही और किसी में दो या तीन हफ्ते बाद ही दिखाई देती है। गर्भ ठहरने के मुख्य लक्षण आमतौर पर इस प्रकार के हैं:-

मासिक धर्म में देरी:- एक स्वस्थ महिला के सामान्य रूप से चल रहे मासिक का अचानक से न आना गर्भ ठहरने का लक्षण हो सकता है। हालाँकि यह कई अन्य परिस्थितियों में भी संभव है, लेकिन फिर भी मासिक न आना गर्भ ठहरने का स्पष्ट लक्षण माना जाता है। ऐसा शरीर में एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन के स्तर में वृदि के कारण होता है।

स्पॉटिंग या हल्का भूरा स्राव:- निषेचित अंडा जब गर्भवती महिला के गर्भाशय से जुड़ता है, तब हल्का रक्तस्त्राव हो सकता है, जिसे कुछ महिलाएं लेट पीरियड भी समझ लेती हैं। स्पॉटिंग गर्भावस्था के चौथे हफ्ते में दिखाई दे सकती है , मगर हर गर्भवती महिला में यह लक्षण दिखना जरुरी नहीं है।

जी मचलना या उलटी होना:- लगभग 50 से 80 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में जी घबराने या खाना देखकर उबकाई आना या उलटी होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। यह लक्षण अलग-अलग तीव्रता में गर्भावस्था के चौथे हफ्ते से छठे हफ्ते से दिखना शुरू होता है और लगभग तीन महीने की गर्भावस्था तक जारी रहता है। आमतौर पर महिला को सुबह उठते ही उबकाई आना शुरू हो जाता है, इसलिए इसे (MORNING SICKNESS) कहते हैं। परन्तु यह दिन में कभी भी हो सकता है और किसी किसी महिला को पूरी गर्भावस्था में इस समस्या का सामना करना पड़ता है। यह भी शरीर में एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन की अधिकता के कारण होता है।

भोजन में अरुचि होना:- गर्भवती महिला को अचानक ही किसी खास तरह के भोजन से गन्ध आने लगती है और वह उसे न पसंद करने लगती है। उसकी महक से ही उन्हें उबकाई आने लगती है। कुछ महिलाओं को मुह का स्वाद कड़वा होने की शिकायत भी आती है।

कुछ ख़ास खाने की तीव्र इच्छा:- गर्भावस्था के शुरुआती समय में महिला को कुछ विशेष चीजें जैसे आमतौर पर खट्टी चीजें जैसे इमली, अचार, कच्चा आम, खट्टे फल, चोकलेट, आइसक्रीम, जैसी चीजें खाने की तीव्र इच्छा हो सकती है। कुछ महिलाओ में आयरन व अन्य पोषक तत्वों की कमी के कारण मिटटी, खड़िया आदि खाने की तीव्र इच्छा होती है जो माँ और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक होता है।

बार-बार मूत्र त्याग की इच्छा/पेशाब अधिक होना:- गर्भवती महिला के शरीर में ह्यूमन कोरिओनिक गोनेडोट्रॉफिन हॉर्मोन का स्त्राव होता है जो पेट के निचले हिस्से में रक्त प्रवाह को बढ़ता है, जिससे पेशाब जल्दी-जल्दी आता है। गर्भावस्था में किडनी भी अधिक सक्रीय होती है तो पेशाब ज्यादा बनता है इसके अतिरिक्त बढ़ता हुआ गर्भाशय भी मूत्राशय पर दबाव डालता है जिसकी वजह से भी पेशाब जल्दी आता है। ये लक्षण सामन्यतः दूसरे महीने में दिखाई देने लगते हैं और तीन महीने बाद यह लक्षण गायब होने लगता है क्योंकी हॉर्मोन का स्तर घटने लगता है और गर्भाशय भी सीधा होकर ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है।

कब्ज होना:- शरीर में प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन के स्तर में वृद्धि से मांसपेशियों में ढीलापन आ जाता है, आंतो के काम करने की प्रक्रिया धीमी होने से पाचन क्षमता भी धीमी हो जाती है जिससे कब्ज की समस्या होना आम बात है। ये समस्या कम पानी पीने, आयरन की गोलियां लेने और तनाव रहने से और बढ़ सकती हैं।

पेट में जलन, गैस, पेट फूलना:- प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन के कारण पूरे पाचन तंत्र की मांसपेशियां और गतिविधि ढीली पड़ जाती है। जिसकी वजह से आमाशय से एसिड ऊपर आहार नाल में चढ़कर पेट और छाती में जलन पैदा करता है। आमाशय में देर तक खाना रुका रहने की वजह से पेट भरा-भरा महसूस होता है। पाचन क्षमता प्रभावित होने से पेट फूलने की समस्या भी आती है।

स्तनों में सूजन, भारीपन व दर्द महसूस होना:- गर्भावस्था के चौथे से छठे हफ्ते में ही गर्भवती महिला को स्तनों में भारीपन, सूजन व दर्द का अहसास होने लगता है। यह लक्षण एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन के बढ़ते स्तर के कारण दिखाई देते हैं क्योंकि स्तन के ऊतक हार्मोन स्तर में बदलाव के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं जिसमें स्तनों का आकार और रक्त प्रवाह बढ़ने लगता है।

निप्पल के रंग में बदलाव होना:- गर्भावस्था के लगभग 11 वें हफ्ते में गर्भवती महिला के निप्पल का आकार बड़ा हो जाता है और निप्पल और उसके चारों तरफ के गहरे भूरे रंग के घेरे का रंग और भी गहरा हो जाता है और घेरे के बाहरी किनारे पर उभरे हुए दाने से दिखाई देने लगते हैं। 12 वें हफ्ते में निप्पल को दबाने पर गाढ़ा, पीला, चिपचिपा स्त्राव भी दिखाई दे सकता है। पहली बार गर्भवती होने वाली महिलाओं में स्तन के यह बदलाव गर्भावस्था का बहुत खास लक्षण है।

अत्यधिक थकान व नींद महसूस होना:- गर्भावस्था में शरीर में होने वाले बदलावों, प्रोजेस्ट्रोन के बढ़ते स्तर और भ्रूण के विकास के लिए पोषण पहुंचाने के कारण गर्भवती महिला बहुत थकान का अनुभव करती है और शुगर के गिरते स्तर की वजह से भी थकान व नींद महसूस होती है।

सिर दर्द होना:- शरीर में ब्लड वॉल्यूम बढ़ने और ब्लड शुगर का स्तर कम होने से मस्तिष्क की कोशिकाओं पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है जिसकी वजह से सिर दर्द की समस्या भी गर्भावस्था में आम है।

मूड में बदलाव, तनाव, चिंता:- गर्भावस्था में मूड स्विंग होना जैसे अचानक ही बहुत खुश या बहुत उदास होना, शरीर में होने वाले बदलावों को लेकर तनाव का होना या चिंता करना जैसे लक्षण भी गर्भ ठहरने के छठे हफ्ते से दिखाई देने लगते हैं। ऐसा शरीर में हार्मोन के स्तर में तेजी से बदलाव के कारण होता है।

शरीर का तापमान बढ़ना:- मासिक धर्म में समय महिला के तापमान में मामूली वृद्धि बहुत सामान्य बात है, परंतु मासिक में देरी होने पर भी कई दिनों तक तापमान सामान्य से ज्यादा महसूस हो तो यह गर्भावस्था का लक्षण हो सकता है। तापमान में वृद्धि सामान्यतः 0.5 डिग्री से ज्यादा की नहीं होती है। यदि इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दे और गर्भ ठहरने की संभावना लगे तो गर्भावस्था की जांच घर पर स्वयं कर लें या फिर योग्य स्त्री विशेषज्ञ से मिलकर उनसे जांच करवाएं।

गर्भावस्था की जांच:-

  1. प्रेगनेंसी टेस्ट किट द्वारा- महिला स्वयं भी गर्भावस्था की जांच किसी मेडिकल स्टोर से प्रेगनेंसी टेस्ट किट मंगवाकर कर सकती है। किट पर लिखे निर्देशों को ध्यान से पढ़ कर उसी के अनुसार जांच करें। यह टेस्ट पीरियड मिस होने के कुछ दिन बाद करना चाहिए इस टेस्ट को करने के लिए सुबह का वक्त सबसे अच्छा होता है क्योंकि सुबह के पेशाब में HCG हार्मोन का स्तर सबसे ज्यादा होता है और सटीक परिणाम की संभावना अधिक होती है।
  2. चिकित्सीय जांच- यदि महिला को पीरियड मिस होने से पहले भी ही गर्भ ठहरने का अंदेशा हो तो चिकित्सक से मिलकर रक्त की जांच करवाई जा सकती है जिससे रक्त में HCG हार्मोन की मात्रा की जांच द्वारा गर्भावस्था की पुष्टि हो जाती है। गर्भावस्था की पुष्टि होने पर चिकित्सक महिला की पूरी जांच करते हैं। उनकी पूरी मेडिकल हिस्ट्री, पहले की गर्भावास्था की जानकारी, कोई भी बीमारी, या इलाज में ली जाने वाली दवाओं के बारे में विस्तार से पूछते हैं। साथ में कुछ रक्त व मूत्र की जाँच के लिए भी लिखते हैं जिसे महिला को समय से करवा लेना चाहिए और डॉक्टर के निर्देशानुसार ही खान-पान व दवाइयां लेना चाहिए। गर्भावस्था के 10वें हफ्ते में चिकित्सक बच्चे के दिल की धड़कन वह शरीर की गतिविधियों की जांच हेतु अल्ट्रासाउंड भी करवा सकते हैं। पहली तिमाही में सामान्यत: एक या दो चिकित्सीय परामर्श काफी होता है। कुछ भी असामान्य होने पर डॉक्टर स्वयं ही जल्दी परामर्श लेने की सलाह देते हैं।

द्वीतीय तिमाही (SECOND TRIMESTER )

गर्भावस्था के चौथे से छठे महीने तक, अर्थात 13 वें से 28 वें सप्ताह तक की अवधि को द्वीतीय तिमाही कहते हैं। यह तिमाही पहली तिमाही की अपेक्षा बहुत सामान्य होती है क्योंकि इस दौरान भ्रूण व महिला दोनों ही बदलाव के प्रति एडजस्ट हो चुके होते हैं। इस तिमाही में महिला गर्भावस्था का सबसे खुशनुमा समय बिता सकती है। पहली तिमाही के कुछ मुश्किल बदलावों से इस तिमाही में छुटकारा मिल जाता है जैसे जी मिचलाना, उल्टी, भोजन में अरुचि, बार-बार पेशाब जाना,अत्यधिक थकान, सिरदर्द, मूड स्विंग आदि और बाकी बदलावों को महिला सहजता से अपना लेती है। इस तिमाही में महिला अधिक सक्रिय रह सकती है, घूम-फिर सकती है, डॉक्टर की सलाह से व्यायाम भी कर सकती है और अपने खान-पान पर पूरा ध्यान दे सकती है जिससे भ्रूण को उचित पोषण मिल सके।

द्वीतीय तिमाही में गर्भावस्था के लक्षण- द्वीतीय तिमाही में महिला में मासिक धर्म न आने के अलावा कुछ नए लक्षण भी उत्पन्न होने लगते है, जैसे-

भ्रूण के कंपन या बच्चे के घूमने का अहसास होना:- इस तिमाही में महिला को भ्रूण के कंपन का एहसास पांचवे माह में होने लगता है जो धीरे-धीरे बच्चे के अच्छे से घूमने के एहसास में बदल जाता है। यह महिला की गर्भावस्था का सबसे सुखद अनुभव होता है।

गर्भाशय के आकार में वृद्धि के साथ पेट का बढ़ना:- गर्भावस्था के 3 महीने बाद गर्भाशय का आकार इतना बढ़ चुका होता है कि वह महिला के पेट के निचले हिस्से में अनुभव किया जा सके। धीरे-धीरे यह ऊपर की तरफ बढ़ता जाता है और 28वें हफ्ते में यह UMBILICUS के ऊपर पहुंच चुका होता है।

पेट पर लंबी गहरी धारी दिखना:- पेट के बीचो-बीच गहरे रंग की यह लंबी खड़ी धारी पेट के निचले हिस्से से ऊपरी हिस्से तक दिखाई देती है। छाती के निचले हिस्से तक दिखने वाली इस धारी को LINEA NIGRA कहते हैं।

पेट के निचले हिस्से में खिंचाव के निशान:- गर्भाशय के बढ़ते आकार की वजह से पेट के निचले हिस्से की त्वचा में खिंचाव आने लगता है जिससे हल्के गुलाबी सफेद निशान/ स्ट्रेच मार्क्स बनने लगते हैं।

चेहरे पर झाइयां:- कुछ महिलाओं के माथे, गाल या आंखों के आसपास झाइयां दिखाई दे देने लगती हैं जो प्रसव के उपरांत स्वयं ही गायब हो जाती हैं।

स्तनों में बदलाव:- स्तनों के आकार में लगातार वृद्धि और निप्पल के घेरे के चारों तरफ एक दूसरे हल्के रंग का घेरा भी दिखाई देने लगता है जिस पर भी छोटे उभरे दाने से दिखाई देने लगते हैं। स्तन की त्वचा में खिंचाव की वजह से धारियां भी दिखाई दे सकती हैं। इस तिमाही में बच्चे का विकास बहुत तेजी से होता है और महिला को इस समय अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे इस तिमाही में उसको कम से कम 5 KG वजन बढ़ाने और बच्चे को उचित पोषण मिल सके। इस तिमाही में प्रत्येक माह चिकित्सक से जांच करवानी चाहिए। जांच में बच्चे की धड़कन भी सुनी जा सकती है और उसके विकास पर भी नजर रखी जा सकती है।

तृतीय तिमाही ( THIRD TRIMESTER)

गर्भावस्था के सातवें माह से प्रसवकाल तक, अर्थात 29वें हफ्ते से 40 हफ्ते तक या प्रसव के समय तक की अवधि को तृतीय तिमाही कहते हैं। इस समय बच्चे का विकास तीव्र गति से होता है और मां का वजन भी अच्छे से बढ़ता है। ये समय विशेष ध्यान रखने वाला होता है और इस समय शारीरिक सक्रियता कुछ कम कर देनी चाहिए जिससे प्रसव सामान्य रूप से पूरे समय पर हो। 28 सप्ताह से अधिक अवधि के बच्चे को उच्च गुणवत्ता चिकित्सीय देखभाल के द्वारा गर्भाशय से बाहर भी जीवित रखा जा सकता है। 

तृतीय तिमाही में गर्भावस्था के लक्षण- मासिक ना आने के अलावा तृतीय तिमाही के लक्षण इस प्रकार है–

गर्भाशय के आकार में वृद्धि के साथ पेट का बढ़ना:- गर्भावस्था में महिला का पेट बढ़ना 36 वें हफ्ते तक जारी रहता है जब पेट बढ़कर छाती के निचले हिस्से तक पहुंच जाता है।
 
धड़कन बढ़ना और सांस लेने में दिक्कत महसूस होना:- यह लक्षण बढ़ते हुए पेट द्वारा छाती के निचले हिस्से पर दबाव डालने से उत्पन्न होता है।
 
पेशाब बार-बार आना:- बढ़ते गर्भाशय द्वारा मूत्राशय पर दबाव डालने के कारण बार-बार पेशाब आने का लक्षण लक्षण पुनः दिखाई देने लगता है।
 
बच्चे का घूमना:- इस तिमाही में बच्चे का घूमना व लात मरना बहुत अच्छे से महसूस किया जा सकता है।
 
स्ट्रेच मार्क्स:- पेट के निचले हिस्से में खिचाव की वजह से स्ट्रेच मार्क्स पड़ जाते हैं जिन्हें आसानी से देखा जा सकता है।
 
स्तनों में बदलाव:- स्तनों के आकर में वृद्धि इस तिमाही में जारी रहती है।
 
वजन तेजी से बढ़ना:- इस तिमाही में महिला का वजन बहुत तेजी से बढ़ता है और पूरी तिमाही में महिला का वजन लगभग 6KG में वृद्धि होती है।
 
पैरों में सूजन:- गर्भाशय के आकार में वृद्धि से रक्तवाहिनियो ऊपर दबाव पड़ता है जिससे पैरों में सूजन आ जाती है।
 
थकान व कमजोरी:- इस तिमाही में महिला पुनः अत्यधिक थकान व कमजोरी का अनुभव करती है। इसलिए इस दौरान शारीरिक सक्रियता थोड़ी कम कर देनी चाहिए और काम के बीच-बीच में आराम करते रहना चाहिए।
 
त्वचा रुखी होना:- इस तिमाही में कई बार त्वचा रुखी होने लगती है जिसकी वजह से शरीर के विभिन्न हिस्सों में खुजली की शिकायत आ सकती है।
 
बैठने में मुश्किल होना:- पेट बढ़ने के साथ ही महिला को अधिक देर तक एक ही जगह बैठे रहने में मुश्किल होती है। इसलिए उठकर थोड़ा-थोड़ा टहलना और विश्राम जरूर करना चाहिए।
 
गर्भावस्था के अंतिम चरण का लक्षण:- गर्भावस्था के आखिरी दिनों में महिला को अचानक पेट बढ़ने से उत्पन्न लक्षणों में कुछ आराम महसूस होने लगता है। ऐसा बच्चे के सिर या धड़ के नीचे खिसकने (ENGAGEMENT)के कारण होता है। इस तिमाही में पूरी सतर्कता बरतते हुए प्रत्येक 15 दिनो में चिकित्सक से जांच करवाते रहना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर अल्ट्रासाउंड जांच भी करवाई जा सकती है। जिससे बच्चे के विकास और संभावित प्रसवकाल का अनुमान लगाया जा सके। इस प्रकार पूरी गर्भावस्था के दौरान महिला को नियमित समय पर अपना चेकअप कराते रहना चाहिए जो गर्भवती महिला व उसके होने वाले बच्चे दोनों के लिए आवश्यक भी है और अच्छा भी है। परिवारजनों के सहयोग से महिला तनाव मुक्त रहकर होने वाले बदलावों से सामंजस्य स्थापित करके इन दिनों का पूरा आनंद उठा सकती है और एक स्वस्थ शिशु को जन्म देकर गौरवान्वित अनुभव करती है।