22 मई 2020 को है वट सावित्री व्रत, जानिए व्रत की आसान पूजा विधि और महत्व

By Ek Baat Bata | May 18, 2020

पूरा विश्व बहुत अच्छे से जानता है कि भारत संस्कृति और सभ्यता वाला देश है। इसकी अखंडता में ही एकता है, भारत में कई प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं। महिलाएं और पुरुष कई प्रकार के व्रत भी रखते हैं। हर व्रत की एक विशेषता और अपना एक महत्व है। कभी व्रत श्री कृष्ण के जन्म पर रखा जाता है, कभी बच्चों की आयु के लिए रखा जाता है, या कभी करवा चौथ नाम का व्रत महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। करवाचौथ की तरह ही एक व्रत पत्नियां अपने पति के लिए और उनकी लंबी आयु के लिए रखती हैं जिसका नाम है 'वट सावित्री व्रत'। यह हिंदू धार्मिक संस्कृति का बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। इसे हर महिला अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखती है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं ही रख सकती हैं। मान्यता यह है, जो महिलाएं वट सावित्री व्रत का सच्चे मन से पालन करती हैं, उनके जीवन साथी की आयु बढ़ती है। सनातन संस्कृति में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए इस व्रत का उपवास रखती हैं। आज हम आपको इस महत्वपूर्ण व्रत की तारीख, व्रत विधि, व्रत कथा और इससे जुड़ी सभी जानकारियां देंगे।


कब है वट सावित्री व्रत?
इस व्रत को हर साल रखा जाता है, महिलाएं विधि पूर्वक इस व्रत को रखती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ महीने की कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि को ही रखा जाता है। इस साल यह तारीख 22 मई को पड़ रही है। इसीलिए वट सावित्री का व्रत 22 मई 2020 को रखा जाएगा। इसे देश के अलग-अलग कोने में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं।


वट सावित्री व्रत का मुहूर्त
अमावस्या तिथि आरंभ - 21:35 बजे (21 मई 2020)
अमावस्या तिथि समाप्त - 23:07 बजे (22 मई 2020)


वट सावित्री व्रत का महत्व
हिंदू धर्म में वटवृक्ष को बहुत पूज्यनीय माना जाता है और लोग इसकी पूजा भी करते हैं। शास्त्रों के मुताबिक बरगद के पेड़ में ब्रह्मा विष्णु और महेश यानी शिव तीनों देवताओं का वास होता है। इस बरगद के पेड़ की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वट सावित्री व्रत आस्था, कामना और महिलाओं के बारे में काफी कुछ बताता है। सावित्री का मतलब है, जो महिला सशक्तिकरण का महान प्रतीक है। सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण मांग लिए थे। इसीलिए पौराणिक कथाओं में सावित्री को श्रेष्ठ स्थान दिया गया है, कहा जाता है, कि जब सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से लेने गयी थी। तब उसने यमराज को इतना विवश कर दिया था, कि एक स्त्री के आगे वह महान यमराज हार गया और उसने सावित्री के पति सत्यवान के प्राण वापस कर दिए। वट सावित्री व्रत में महिलाएं सावित्री के समान अपने पति के दीर्घायु की कामना तीनों देवताओं से करती है। ताकि उनके पति को लंबी आयु, अच्छा स्वास्थ्य और समृद्ध जीवन प्राप्त हो।


वट सावित्री व्रत विधि
-सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए।
-स्नान करने के बाद मन में व्रत करने का संकल्प और भगवान का ध्यान करना चाहिए।
-इस व्रत को शुरू करने से पहले महिलाओं को अपना पूरा 16 श्रृंगार करना चाहिए।
-इस दिन महिलाओं को अपने श्रृंगार में पीला सिंदूर ही लगाना चाहिए। यह वट सावित्री व्रत में काफी शुभ माना जाता है।
-महिलाओं को पूजा करने से पहले बरगद के पेड़ के पास सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखनी चाहिए।
-बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें फूल, अक्षत, मिठाई चढ़ानी चाहिए।
-बरगद के पेड़ में रक्षा सूत्र या कच्चा सूत बांधकर पति की लंबी आयु के लिए आशीर्वाद की कामना करनी चाहिए।
-बरगद के वृक्ष की सात बार परिक्रमा करके भगवान का ध्यान करना चाहिए।
-इसके बाद कथा सुनने के लिए हाथ में काला चना लेकर ही व्रत की कथा को सुनना चाहिए।
-कथा सुनने के बाद महिलाओं को पंडित जी को दान देना चाहिए। दान में वस्त्र, पैसे और चना, फल आदि दे सकती हैं।
-अगले दिन व्रत को तोड़ने से पहले बरगद के वृक्ष का कोपल खाकर उपवास समाप्त करना चाहिए।
-इसके साथ ही सौभाग्यवती या विवाहित महिला को श्रृंगार का सामान जरूर दान में देना चाहिए।