महिलाओं की जिंदगी को अंधकार में धकेलने वाली ये परंपरा, जानिए क्या है खतना

By Ek Baat Bata | Jun 04, 2020

आज के समय भले ही हम कितने भी विकसित हो गए हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जो आज भी उसी रूढ़िवादी सोच में जी रहे हैं। इस रूढ़िवादी सोच और अंधविश्वास में जिंदा रहते हुए वो आज के समय मे भी कुछ ऐसे रीति रिवाजों का पालन करते हैं जो किसी भी समाज में इंसानियत को शर्मसार करने वाली है। ऐसी ही महिलाओं के जननांग के खतना की प्रथा एशिया और अफ्रीका के बहुत से देशों में व्याप्त है, खासकर बोहरा समुदाय में। भारत में करीब 20 लाख बोहरा हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अफ्रीका और एशिया के करीब 30 देशों में 20 करोड़ से ज्यादा लड़कियों का खतना हो चुका है। 
क्या है खतना ?
महिलाओं का खतना करते समय उनकी योनि के बाहरी हिस्से (क्लाइटॉरिस) को आंशिक या पूरी तरह काट दिया जाता है। इस प्रथा का पालन करने वाले समुदायों का मानना है कि इससे महिलाओं की कामेच्छा नियंत्रित रहती है।अनेक समुदायों के इसके लिए अलग अलग तर्क हैं। अलग-अलग देशों में महिलाओं का भिन्न-भिन्न तरीके से खतना किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महिलाओं के चार तरह के खतने को चिह्नित किया है।
खतना के प्रकार 
पहला प्रकार- इसे क्लाइटॉरिडेक्टॉमी कहते हैं। इसमें महिलाओं के क्लाइटॉरिस को आंशिक या पूरी तरह निकाल दिया जाता है। कुछेक अपवाद मामलों में क्लाइटॉरिस को ढंकने वाले त्वचा को हटाया जाता है।
दूसरा प्रकार- इसे एक्सीजन कहते हैं। इसमें क्लाइटॉरिस और लेबिआ माइनोरा (योनि की अंदरूनी त्वचा) को आंशिक या पूरी तरह हटा दिया जाता है लेकिन इसमें लेबिआ मेजोरा (योनि की बाहरी त्वचा) नहीं हटायी जातीं।
तीसरा प्रकार- इसे इनफिबुलेशन कहते हैं। इसमें योनिमुख को संकरा बनाया जाता है। इसके लिए लेबिए माइनोरा या लेबिअ मेजोरा को काटकर दोबारा लगा दिया जाता है या कई बार योनिमुख को आंशिक रूप से सिल दिया जाता है। इनफिबुलेशन में क्लाइटॉरिडेक्टॉमी नहीं होती।

चौथा प्रकार- गैर-चिकत्सकीय कारणों से महिलाओं के जननांग में छेद करना, काटना, जलाना इत्यादि अन्य प्रकार से विकृत करने को चौथे प्रकार में रखा जाता है।

यह ज्यादातर शिशुओं और 15 साल की उम्र के बीच की लड़कियों पर किया जाता है। यह गंभीर रक्तस्राव, पेशाब करने की समस्या, अल्सर, संक्रमण और बच्चे के जन्म में अन्य जटिलताओं और नवजात मृत्यु के जोखिम सहित समस्याओं का कारण बनता है।

पूर्वी, दक्षिणी और उत्तरी अफ्रीका की कई संस्कृतियों में जिस दिन लड़कियों के गुप्तांगो को काटा जाता है। उस दिन को एक यादगार उत्सव की तरह मनाया जाता है और यह माना जाता है कि ऐसा करने से उनकी शादी आसानी से हो जाएगी। कुछ लोग इसके पीछे सफाई से सम्बंधित तर्क देते हैं और उनकी नज़र में एक लड़की या महिला चपटी, कठोर और रूखी होनी चाहिए। आप अपने धर्म में कितना विश्वास रखते हैं इसकी भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

खतना या एफ़जीसी खतरनाक रूप ले सकता है। और इससे होने वाले ज़ख्म एक महिला के लिए ज़िंदगी भर की मुसीबतों का सबब बन सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले चिकित्सीय उपकरण और आसपास का वातावरण साफ़ होना चाहिए नहीं तो संक्रमण का खतरा उत्पन्न हो सकता है, जिससे उस पीड़ित महिला या लड़की की जान भी जा सकती है।

इस परिस्थिति में एक बार अगर घाव भरने के बाद भी दिक्कते हो सकती है। औरतों की योनि और मूत्रमार्ग में संक्रमण भी फैल सकता है, माहवारी के समय कठिनाई हो सकती है, सेक्स के दौरान पीड़ा या फ़िर आमतौर पर भी भयंकर पीड़ा का एहसास हो सकता है। गुप्तांगो पर कट लगे होने से यौन संक्रमित रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है। व्यभिचार और पुटक भी सामान्य है। यहाँ तक कि यह एक महिला को बाँझ भी बना सकता है।

जो सबसे बड़ा खतरा होता है, वो है प्रसव के दौरान, और वो भी जच्चा-बच्चा दोनों को। अगर किसी महिला को 3 और 4 प्रकार के कट लगे हो तो योनि के बेहद संकीर्ण होने से बच्चे का बाहर निकलना बहुत पीड़ादायक होता है। अगर यह प्रक्रिया लंबी हो जाये तो यह फिस्टुला (नासव्रण) और बच्चे दोनों के लिए खतरा हो सकता है। फिस्टुला एक गड्ढा होता है जो योनि और ब्लैडर या योनि और मलद्वार के बीच में पाया जाता है। फिस्टुला व्यभिचार जैसे अन्य चिकित्सीय और सामाजिक दुष्परिणामो का सबब भी बन सकता है।

कई गलत धारणाएं भी प्रचलित है। जैसे कि कुछ लोगो को लगता है कि ऍफ़ जी सी से एक महिला की प्रजनन क्षमता बढ़ती है और कई यौन संक्रमित रोगों का उपचार होता है। लोगो का मानना है कि ऐसा करने से लड़कियों की वर्जिनिटी बनी रहती है और शादी से पहले उनकी सैक्स की इच्छा को खत्म करती है जिससे वो शुद्ध व पवित्र रह पाती हैं।