दिहाड़ी मजदूर से पद्मश्री सम्मान पाने तक का सफर, पढ़िए दुलारी देवी के साहस की कहानी

By Ek Baat Bata | Jun 12, 2021

बिहार के मधुबन जिले के रांटी गांव की दुलारी देवी उन कुछ महिलाओं में से हैं जिन्होंने अपनी कला से समाज में एक बदलाव लाने की पहल की है। प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित, दुलारी देवी कभी दूसरों के घर झाड़ू-पोछा करके अपना गुजरा करती थीं। मल्लाह समुदाय से ताल्लुक रखने वाली दुलारी देवी की जीवन यात्रा वास्तव में प्रेरणादायक रही है। दुलारी देवी ने अपनी कला के जरिए दलित समाज से भेदभाव और उत्पीड़न जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों का प्रतिनिधित्व किया। पद्मश्री दुलारी देवी की कहानी एक ऐसी गरीब ग्रामीण महिला की है, जिसने गरीबी से खुद को एक कुशल और मान्यता प्राप्त चित्रकार के रूप में स्थापित करने का सफर तय किया है। आइए जानते हैं एक साधारण सी महिला, दुलारी देवी के साहस की असाधारण कहानी -  

दुलारी देवी का जन्म एक बेहद गरीब ग्रामीण परिवार में हुआ था। शादी के बाद उन्होंने एक लड़की को जन्म दिया था, जिसकी दुर्भाग्य से जन्म के कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गयी। दुलारी देवी की परेशानी तब और बढ़ गई जब उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया और दूसरी शादी कर ली। इसके बाद दुलारी को अपने पैतृक गाँव लौटना पड़ा। अपना गुजारा चलाने के लिए दुलारी ने खेत में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। चावल के खेतों में धान की बुवाई से लेकर लोगों के घर में बर्तन धोने तक, दुलारी ने गुजर-बसर के लिए कई काम किए।  

एक बार दुलारी को एक सफल मिथिला कलाकार, कर्पूरी देवी के घर में एक नौकरानी के रूप में काम करने का मौका मिला। एक बार उन्होंने कर्पूरी देवी को इन सुंदर चित्रों को बनाने की कला सिखाने के लिए कहा। कर्पूरी देवी भी मान गईं और दुलारी को सिखाने लगीं। देखते ही देखती दुलारी इस कला में माहिर हो गईं और एक कलाकार बन गईं। यही वह समय था जब उनकी रूचि मिथिला पेंटिंग की तरफ बढ़ी। वह मिथिला पेंटिंग को देखतीं और फिर पेंटिंग बनाने वाली महिलाओं से उन्हें सिखाने के लिए कहती। इस तरह वे 6 महीने का पेंटिंग प्रशिक्षण लेने में सक्षम हुईं। उसके बाद दुलारी ने कर्पूरी देवी के सहयोग से गौरी मिश्रा द्वारा संचालित एक स्थानीय चित्रकला संस्थान में पंजीकरण कराया। दुलारी ने वहां 200 रुपये प्रति माह के वेतन पर 16 साल तक काम किया।

दुलारी देवी मिथिला क्षेत्र के पारंपरिक राम-सीता चित्रों की एक प्रसिद्ध चित्रकार हैं। हालाँकि, इसके अलावा भी वह बहुत सारे समकालीन विषयों और सामाजिक मुद्दों जैसे बाल विवाह, एड्स जागरूकता, भ्रूण हत्या आदि पर भी पेंटिंग्स बनती है। वे गणेश प्रतिमाओं की भी अनुभवी चित्रकार हों। दुलारी देवी का मानना ​​​​है कि एक व्यवसाय के रूप में उनकी पेंटिंग ने न केवल उन्हें एक स्वतंत्र जीवन जीने का साधन दिया है बल्कि उन्हें दुनिया का सामना करने और आसपास के लोगों के साथ आराम से बातचीत करने का साहस भी दिया है। दुलारी अपने ही गांव की शादियों में दीवारों को पेंट करने का शुल्क नहीं लेती है। वे केवल अपने समुदाय के बाहर काम के लिए शुल्क लेती है। दुलारी ने मिथिला कला के क्षेत्र में अपने दशकों के योगदान के लिए कई प्रशंसा और मान्यता प्राप्त की है।