अडिग साहस की मिसाल थीं दुर्योधन की पत्नी भानुमति, पढ़िए पूरी कहानी

By Ek Baat Bata | Dec 30, 2020

"कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा" यह एक बहुत प्रचलित कहावत है। लेकिन इसके पीछे की कहानी बहुत कम लोग ही जानते हैं। यह कहावत कौरव सेना के प्रमुख दुर्योधन की पत्नी भानुमती के विषय में है। महाभारत की कहानी हर किसी ने पढ़ी, देखी और सुनी होगी। लेकिन महाभारत की कहानी में बहुत से ऐसे पात्र हैं जिनकी कहानी बहुत कम सुनने को मिलती है। ऐसी ही है भानुमति की कहानी। भानुमति एक बहुत सुंदर, बुद्धिमान और साहसी महिला थी जिसने कहीं से ईंट और कहीं से रोड़ा इकट्ठा करके अपना कुनबा (परिवार) जोड़ा था। आइए जानते हैं भानुमति के साहस की कहानी -  

भानुमती, कम्बोज के राजा चंद्रवर्मा की पुत्री थी। भानुमती की सुंदरता के किस्से दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। गुणवान और बुद्धिमान थी। कंबोज गांधार से सटे एक साम्राज्य, आर्यावर्त का हिस्सा था। सुंदरता के अलावा, भानुमति को अपनी शारीरिक शक्ति और बुद्धिमत्ता के लिए भी जाना जाता था। उन्हें लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती, त्रिंबिकों का एक संयोजन कहा गया था। कहा जाता है कि जब चंद्रवर्मा को संतान नहीं हो रही थी तो उन्होंने त्रिंबिका से प्रार्थना की थी, जिसके बाद भानुमती का जन्म हुआ था।

जब भानुमती की आयु विवाह योग्य हुई, तो उनका पति चुनने के लिए स्वयंवर आयोजित किया गया था। 'स्वयंवर' का अर्थ है "स्वयं के बल पर विजय प्राप्त करना"। भानुमती के गुणों के चर्चे दूर-दूर तक काफी प्रसिद्ध थे।  जिस वजह से भानुमति के स्वयंवर में शिशुपाल, जरासंध, कर्ण और अन्य शक्तिशाली राजाओं के साथ दुर्योधन भी शामिल हुआ था। दुर्योधन अपनी माँ गांधारी से भानुमती की सुंदरता के किस्से सुनकर बड़ा हुआ, और वह अपने लिए भानुमती को जीतने पर आमादा था।

जब स्वयंवर के समय भानुमती अपनी दासियों के साथ राजाओं से पास से गुजर रही थी तब उसकी नज़र कर्ण पर पड़ी और कर्ण को भी भानुमती पहली नज़र में पसंद कर लिया था। भानुमती को देखकर दुर्योधन उसके रूप पर मोहित हो गया था। वह चाहता था कि भानुमती उसे ही वरमाला पहनाए। लेकिन जब भानुमति उसके आगे से गुजर गई तो वह क्रोधित हुआ और उसके हाथ से माला लेकर अपने गले में डाल ली। यह देखकर वहां मौजूद सभी राजाओं ने अपनी-अपनी तलवारें निकाल ली। अपने कर्तव्य की भावना को देखते हुए, कर्ण ने अपनी इच्छा को दबाते हुए, दुर्योधन का भानुमती के पिता और उनकी सेना के खिलाफ बचाव किया, जिन्होंने दुर्योधन को चुनौती देने के लिए कदम बढ़ाया। दुर्योधन, भानुमती का हाथ पकड़कर उसे महल के बाहर ले जाने लगा। उसने जाते हुए सभी को चुनौती दी कि कर्ण को परास्त करने के बाद मेरे पास आना।

पराक्रमी कर्ण को देखकर जरासंध को छोड़कर सब लोग पीछे हट गए। जरासंघ भी भानुमति से विवाह करना चाहता था। कर्ण ने उससे युद्ध किया और उसे हरा दिया। यह जरासंघ के जीवन की पहली हार थी। वह कर्ण से बहुत प्रभावित हुआ और उसने उसका सहयोगी बनने की कसम खाई। कर्ण ने तुरंत जरासंध की वफादारी दुर्योधन को हस्तांतरित कर दी। इसी तरह जरासंध कौरवों का सहयोगी बन गया था। इस प्रकार दुर्योधन ने भानुमति का अपहरण कर लिया और उसे जबरन हस्तिनापुर ले आया।

भानुमति को हस्तिनापुर ले आने के बाद दुर्योधन ने खुद को यह तर्क देकर सही ठहराया कि  भीष्म पितामह भी अपने सौतेले भाइयों के लिए अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का हरण कर के ले आए थे। भानुमति अंत में उसे अपने पति के रूप में स्वीकार करती है और कुछ ईंट और रोड़ा इकट्ठा करती है।

दोनों की दो संताने हुईं। बेटा लक्ष्मण जिसे कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने मारा था और दूसरी थी पुत्री लक्ष्मणा जिसका अपहरण भगवान कृष्ण के जाम्वन्ति से जन्मे पुत्र साम्ब से विवाह हुआ। भगवान कृष्ण के पुत्र सांबा ने लक्षमणा से हुआ था। हालांकि युद्ध के बाद, न तो भानुमती का पति बचा और न ही उसके सबसे अच्छे दोस्त कर्ण। इसके बाद भानुमति ने अर्जुन से शादी कर ली और इसी तरह भानुमति ने अपना परिवार बनाया। भानुमति ने कुनबा जोड़ा। इसी कारण ये कहावत बनी, "कंही की ईंट कंही का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा।"

भानुमति ने महाभारत में कोई बड़ी भूमिका नहीं निभाई। उसका उल्लेख केवल 2 स्थानों पर है - स्त्री पर्व और शांति पर्व। स्त्री पर्व में, गांधारी के अनुसार, भानुमती बहुत बुद्धिमान और शारीरिक रूप से भी मजबूत थीं। वह कुश्ती के लिए दुर्योधन का मजाक उड़ाती और चुनौती देती थी। दुर्योधन के साथ रहने के बाद वह बहुत बदल गई थी। गांधारी ने कहा था कि भानुमति अभी भी बहुत खूबसूरत महिला है लेकिन अंदर से बहुत दुखी और टूटी हुई है।