इन सुझावों के पालन से महिलाएं काफी हद तक रजोनिवृत्ति संबंधित परेशानियों से पा सकती हैं निजात

By Ek Baat Bata | Oct 11, 2019

रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज -

परिवर्तन हमारे जीवन का अहम हिस्सा है जिसके बिना हमारा जीवन अकल्पनीय है। हमारा शारीरिक विकास भी परिवर्तन की इस प्राकृतिक प्रक्रिया से गुजरता रहता है जिसे रोकना या बदलना कुदरती तौर पर हमारे हाथ में नहीं होता। 'रजोनिवृत्ति' महिलाओं के शारीरिक विकास से जुड़ा ऐसा ही प्राकृतिक परिवर्तन है।

रजोनिवृत्ति क्या है?

रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज प्रत्येक महिला के जीवन में होने वाली प्राकृतिक बदलाव की वो अवस्था है जब उम्र के एक पड़ाव पर आकर उसका मासिक धर्म स्थाई रूप से बंद हो जाता है। एक बार मासिक बंद होने के बाद 1 वर्ष तक माहवारी ना होने पर महिला की रजोनिवृत्ति हो जाती है।

अधिकतर महिलाओं में रजोनिवृत्ति की सामान्य उम्र 45- 55 वर्ष होती है। परंतु कभी-कभी कुछ स्त्रियों में 45 वर्ष से कम उम्र में रजोनिवृत्ति हो जाती है। इस अवस्था को 'प्री-मेच्योर मेनोपॉज' कहते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार बड़ी संख्या में भारतीय महिलाएं इस स्थिति से गुजर रही हैं। आजकल की बदलती जीवनशैली, भागदौड़ वाली जिंदगी, तनाव, अनुचित खान-पान और पर्यावरणीय असंतुलन एवं प्रदूषण के कारण लड़कियां कम उम्र में ही रजस्वला हो जाती है और फिर रजोनिवृत्ति भी जल्दी हो जाती है। इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं होती। परन्तु कभी-कभी ऐसा गर्भाशय की किसी बीमारी या अंडाशय के समय पूर्व काम करना बंद कर देने के कारण या कैंसर के इलाज में प्रयोग की गई कीमो थेरेपी या रेडियोथैरेपी के कारण भी हो सकता है।

कारण-

स्त्री के प्रजनन तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण अंग है अंडाशय या डिंबग्रंथि या ओवरी। जहां अंडो का निर्माण होता है। किशोरावस्था में जब यह डिंबग्रंथि सक्रिय होती है और प्रजनन हॉर्मोन्स के स्तर में बदलाव आता है तब प्रत्येक मास में डिंबग्रंथि से एक डिंब परिपक्व होकर बाहर निकलता है और डिंब वाहिनी नली में शुक्राणु के संसर्ग से भ्रूण निर्माण के बाद गर्भाशय में गर्भ बनने के लिए तैयार होता है।

गर्भधारण की स्थिति ना बनने पर गर्भाशय की अंदरूनी परत का स्राव मासिक धर्म के रूप में हो जाता है। यही चक्र करीब 45-55 वर्ष की उम्र तक चलता रहता है। जब डिम्बग्रंथि की सक्रियता प्राकृतिक रुप से कम होना शुरू होजाती है। तब उससे परिपक्व अंडो का उत्सर्ग भी धीरे धीरे बंद होजाता है और एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन का स्राव भी बंद होजाता है। जिससे महिला गर्भ धारण योग्य नही रहती है और उसका मासिक धर्म भी बंद होजाता है। वर्ष तक मासिक ना आने की स्थिति रजोनिवृत्ति की सूचक है।

लक्षण- 

रजोनिवृत्ति कोई क्षणिक या एक - दो दिनमें होने वाला परिवर्तन नहीं है बल्कि इसकी कुदरती प्रक्रिया धीमी गति से दो-चार वर्ष पूर्व ही आरंभ होजाती है, जब अंडाशय से उसे सेक्स हार्मोन  का स्राव घटना शुरू हो जाता है।  इस समय अवस्था को पेरिमेनोपॉज कहते हैं। इस दौरान महिलाओं के शरीर में कई शारीरिक और मानसिक परिवर्तन दिखाई दे सकते हैं जिनकी तीव्रता का स्तर प्रत्येक महिला में भिन्न होता है। कुछ में यह लक्षण इतना नगण्य होते हैं कि महिला को रजोनिवृत्ति से पूर्व इसका कुछ एहसास भी नहीं होता वहीं कुछ महिलाएं शारीरिक परिवर्तन की पीड़ा तो कुछ मानसिक परिवर्तन की त्रासदी से परेशान रहती हैं। रजोनिवृत्ति के लक्षणों की जानकारी के अभाव में महिलाएं खुद को बीमार, लाचार व अयोग्य समझ लेती हैं। उचित जानकारी के साथ यदि वे पहले से उसके लिए मानसिक रूप से तैयार रहें तो बेहतर तरीके से इसके साथ सामंजस्य बैठा सकती हैं।

1) शारीरिक परिवर्तन -

• अनियमित मासिक धर्म- वैसे तो यह लक्षण महिलाओं के जीवन चक्र में कभी भी दिख सकता है मगर रजोनिवृत्ति के करीब हॉर्मोन्स के स्तर में लगातार असंतुलन के कारण उनका मासिक समय पूर्व या देर से आ सकता है या फिर रक्त स्राव असामान्य रूप से कम-ज्यादा हो सकता है।

• हॉट फ्लैशेज- रजोनिवृत्ति का सबसे आम लक्षण है जिसमें महिला को अचानक शरीर में गर्म प्रवाह सा महसूस होता है जो कुछ मिनटों तक बना रह सकता है और गर्दन व चेहरे तक फैलकर वहां की त्वचा को लाल बना देता है।

• अत्यधिक पसीना आना- खासकर गरम प्रवाह के दौरान- ऐसा रात में सोते समय अक्सर महसूस किया जा सकता है।

• थकान- अत्यधिक थकान की स्थिति में महिला के रोज़मर्रा के कार्य भी प्रभावित होने लगते हैं, हर वक्त सुस्ती छाई रहती है, नींद भी प्रभावित होती है और यह संबंधों में तनाव का कारण भी बनता है ।

• चक्कर आना- अचानक कुछ क्षणों या मिनटों के लिए महिला को चक्कर महसूस होता है जो धीरे धीरे ठीक हो जाता है। इस दौरान महिला को गिरने चोट लगने का खतरा भी रहता है।

• सिर दर्द- एस्ट्रोजन के गिरते स्तर के साथ महिला में सिरदर्द की शिकायत आम होती है। उसका माइग्रेन भी बढ़ सकता है।

• शरीर दर्द, कमर दर्द- ऐसा मांसपेशियों में खिंचाव के कारण होता है जिसकी  वजह से महिला को गर्दन, कंधों, कमर आदि में जकड़न या दर्द महसूस होता है।

• घबराहट- एस्ट्रोजन की कमी से कभी-कभी तंत्रिका तंत्र और रक्त परिवहन तंत्र भी अधिक उत्तेजित हो सकते हैं जिसकी वजह से हृदय गति बढ़ जाती है और घबराहट महसूस होती है।

• योनि में शुष्कता- एस्ट्रोजन हार्मोन योनि में प्राकृतिक नमी बनाए रखने में सहायक होता है जिसकी कमी से योनि में सूखापन आ जाता है और स्त्री को संभोग के दौरान दर्द महसूस होने लगता है। इसके अतिरिक्त उसकी सेक्स में अरुचि भी उत्पन्न होने लगती है।

• पाचन संबंधी समस्याएं- एस्ट्रोजन की कमी से रक्त में कोर्टिसोल (cortisol ) हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है जो पाचन तंत्र को सुस्त बना देता है जिसकी वजह से महिला को कब्ज, गैस, पेट फूलने आदि की शिकायत बनी रहती है ।

• वजन बढ़ना- रजोनिवृत्ति के दौरान वजन बढ़ने की शिकायत आम बात है। हार्मोन असंतुलन के कारण शरीर की वसा का जमाव शरीर के कुछ खास हिस्सों में होने लगता है जैसे पेट पर चर्बी जमा होना, जबकी मांसपेशियां कमजोर होने लगती है।

• बालों का झड़ना- एस्ट्रोजन की कमी से बाल शुष्क होना शुरू हो जाते हैं और धोने या कंघी करने पर आसानी से टूटकर झड़ने लगते हैं।

• नाखून टूटना- बालों की तरह ही एस्ट्रोजन की कमी से नाखून भी शुष्क होकर आसानी से टूट जाते हैं।

• मूत्र संबंधी समस्याएं- एस्ट्रोजन की कमी से योनि के सामान्य बैक्टीरिया हानिकारक बैक्टीरिया में तब्दील हो जाते हैं और मूत्र संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। महिला को जल्दी-जल्दी मूत्र त्याग की इच्छा होती है । पेल्विक मांसपेशियों की कमजोरी की वजह से कभी-कभी जोर से हंसने, खांसने, छींकने पर अनियंत्रित होकर स्वतः ही मूत्र प्रवाह हो जाता है।

• स्तनों में भारीपन या दर्द- यह भी हार्मोन असंतुलन की वजह से होता है और रजोनिवृत्ति के बाद स्वतः ही ठीक हो जाता है।

• जोड़ों का दर्द- एस्ट्रोजन के गिरते स्तर के कारण जोड़ों में दर्द, सूजन और आर्थराइटिस की संभावना बढ़ जाती है।

• ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis)- एस्ट्रोजन की कमी से शरीर की  हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है और वह कमजोर होने लगती हैं। जिसकी वजह से गिरने या दुर्घटना होने पर आसानी से टूट सकती है।

• हाथ-पैरों में झनझनाहट/जलन- यह भी एक आम लक्षण है जिसमें महिला को हाथों-पैरों में झनझनाहट या गर्मी / जलन का एहसास या कीड़ा चलने या काटने जैसी चुभन महसूस होती है।

• शुष्क त्वचा- एस्ट्रोजन की कमी से शरीर में कोलेजन बनना भी मंद पड़ जाता है जिसके कारण त्वचा अपनी चमक खोने लगती है और रूखी या शुष्क होना शुरू हो जाती है। त्वचा पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं। रुखी शुष्क त्वचा की वजह से शरीर पर खुजली होने लगती है।

• एलर्जी- हार्मोन असंतुलन की वजह से महिला का रोग प्रतिरक्षा तंत्र प्रभावित हो जाता है और वह वातावरण में मौजूद एलर्जी उत्पन्न करने वाले तत्वों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है।

• शारीरिक गन्ध में बदलाव- एस्ट्रोजन की कमी से पसीने का स्राव बढ़ जाता है, जिससे महिला के शारीरक गन्ध की प्रकृति में बदलाव आ सकता है।

• जीभ या मुह में जलन- महिला के मुह का स्वाद बदल जाता है और उसकी जीभ, होठ, मसुडो या मुह के अंदरूनी हिस्सों में जलन का एहसास हो सकता है।

2) मानसिक परिवर्तन - 

भावनात्मक उतार-चढ़ाव- सेक्स हॉर्मोन्स के असंतुलन की वजह से दिमाग में गाबा (gaba) व सेरेटोनिन (serotonin) नामक न्यूरोट्रांसमीटर का स्राव भी प्रभावित होता है जो दिमाग को शांत रखने व मन को खुश रखने का काम करते हैं। इनका स्राव गड़बड़ाने के कारण भावनात्मक उतार-चढ़ाव जैसे अचानक गुस्सा आना, उदासी, अत्यधिक ख़ुशी या बहुत अधिक रोना आना जैसी समस्याओं से जूझना पड़ सकता है।

पैनिक अटैक-  पैनिक डिसऑर्डर एक ऐसा मनोरोग है जिसमें भावनात्मक आवेगों की तीव्रता बहुत अधिक होती है और इसके कारण मरीज को ह्रदय गति बढ़ना , घबराहट, बेचैनी, साँस में तकलीफ होना या हाथ-पैरो में कम्पन भी महसूस हो सकते हैं।

अनिद्रा– स्त्री को अनिद्रा की शिकायत, हॉट फ्लाशेज, अत्यधिक पसीना, चिंता या पैनिक अटैक की वजह हो सकती है। इसके अलावा प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन की कमी भी  अनिद्रा के लिए जिम्मेदार मानी जाती है।

चिंता– गिरता  एस्ट्रोजन का स्तर शरीर में मूड कंट्रोलर होर्मोन्स के स्राव को प्रभावित करता है, जिसकी वजह से दिमाग को शांत रखना मुश्किल लगता है।

अवसाद– प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन की कमी से हैप्पी होर्मोन्स/न्यूरोट्रांसमीटर प्रभावित होते हैं जिसकी कमी से स्त्री उदासी महसूस करती है, कभी-कभी उसे वापस खुश होने या शांत होने में असमर्थता महसूस होती है। लगातार ऐसी स्थिति बने रहने पर वह अवसाद से घिर जाती है।

गुस्सा, चिडचिडापन– ये भी हार्मोनल असंतुलन की वजह से होने वाले भावनात्मक उतार-चढ़ाव का ही एक हिस्सा है जब महिला को छोटी-छोटी बातों पर भी अत्यधिक क्रोध आने लगता है।

ध्यान लगाने में परेशानी- महिला को किसी भी काम में ध्यान लगाने में दिक्कत महसूस होने लगती है जो नींद की कमी और भावनात्मक उतार-चढ़ाव की स्थिति में और बिगड़ जाता है।

खराब स्मृति- प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन दोनों ही एक अच्छी याददाश्त के लिए आवश्यक रोल निभाते हैं । इनकी कमी से महिला को खराब स्मृति या धुंधली सोच का सामना करना पड़ता सकता है।

उपचार- 

रजोनिवृत स्त्री के जीवन की एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह एक अस्थाई दौर होता है और कुछ समय बाद नया हार्मोन संतुलन प्राप्त होने पर सब कुछ सामान्य स्थिति में लौट आता है। अतः इसके प्रति सकारात्मक रवैया अपनाकर यदि पहले से ही इसके लिए तैयार रहें तो इसके प्रभावों पर भी काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है ।

घरेलू उपाय-

1. शारीरिक परिवर्तनों हेतु उपाय- यदि रजोनिवृत्ति के लक्षण बहुत अधिक तीव्र संवेदनशील नहीं है और दैनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न नहीं कर रहे हैं तो स्त्री को किसी खास उपचार या दवाओ हेतु डॉक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर, संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, पर्याप्त विश्राम और सोच में बदलाव द्वारा ही रजोनिवृत्ति के लक्षणों से निपटा जा सकता है। 

हॉट फ्लैशेस हेतु उपाय / रात्रि में पसीने छूटने हेतु उपाय–

1. अपने दैनिक आहार में अधिक तले-भुने, मिर्च-मसाले युक्त आहार, चाय, कॉफी, सिगरेट, शराब, जैसी उत्तेजक चीजों से परहेज करें।

2.  तनाव से बचें।

3.  वजन कम करें।

4. अपने कार्यस्थल का तापमान ठंडा बनाए रखें।

5. हॉट फ्लैशेज या पसीना आने पर शांत रहकर लंबी व गहरी सांसे लें। 

• अनियमित माहवारी- अनावश्यक तनाव ना लें और अपनी सोच में बदलाव लाएं कि यह हमारे जीवन चक्र का ही एक अहम हिस्सा है और कुछ समय उपरांत स्वतः ही ठीक हो जाएगा। परंतु अधिक अनियमितता या भारी रक्त स्राव की स्थिति में योग्य चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

•  थकान व चक्कर आना- अपने आहार में वसा व कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम रखें और प्रोटीन का सेवन अधिक करें, ताजे फल व सब्जियां, नट्स, सोयाबीन, दाल, मांस-मछली, डेयरी उत्पाद भी अपने आहार में शामिल करें। पानी का भरपूर सेवन करें और पर्याप्त नींद लें।

• अनिद्रा- 

1. रात के समय चाय, कॉफी जैसे कैफीन युक्त पदार्थ व शराब इत्यादि न लें। 

2. कमरा ठंडा रखें। 

3. हल्के सूती वस्त्र पहने।

4.  एक नियमित समय पर ही सोएं और जागें।

5.  रात को भारी खाने और देर से खाने से बचें ।

6.  नींद की गोली का सेवन ना करें।

•  शरीर दर्द/कमर दर्द - नियमित व्यायाम की आदत डालें जिससे मांसपेशियों का लचीलापन बना रहे। रोज सुबह - शाम 20 - 30 मिनट तेज गति से टहलने से बहुत से फायदे होते हैं। अधिक दर्द की स्थिति में कोई दर्द निवारक जेल का उपयोग किया जा सकता है। जहां तक संभव हो दवाओं का उपयोग ना करें`।

•  घबराहट/ हृदय गति बढ़ना- हृदय की मांसपेशियों को सुदृढ़ बनाने हेतु जॉगिंग और तैराकी उपयुक्त व्यायाम हैं। घबराहट की स्थिति में लंबी गहरी सांसे लें।

•  योनि में  शुष्कता-

1.  इसके लिए किसी चिकनाई युक्त क्रीम का इस्तेमाल किया जा सकता है।

2.  यौन सक्रियता से योनि में रक्त प्रवाह अच्छे से बना रहता है इसलिए संबंधों में परहेज से बचें। 

3. अधिक पीड़ा की स्थिति में डॉक्टर की सलाह  से एस्ट्रोजन युक्त क्रीम का इस्तेमाल किया जा सकता है।

• पाचन सम्बन्धी समस्याएं -  

1. तला, भुना मसाले युक्त और भारी आहार से परहेज करें । 

2. पानी खूब पिएं । 

3. उपवास द्वारा शरीर के विषाक्त पदार्थों से छुटकारा पाया जा सकता है । 

4. थोड़ी थोड़ी देर में हल्का भोजन ले । 

• वजन कम करना-

1. स्वस्थ खान-पान

2. उचित व्यायाम (वेट बियरिंग एक्सरसाइज)

• बालों व त्वचा में रूखापन– 

1. धूप से बचें।

2. बाहर जाते समय सनस्क्रीन और कैप का इस्तेमाल करें। 

3. अल्कोहल फ्री मॉइस्चराइजर या लोशन प्रयोग में लाएं।

4. बालों को धोते समय कंडीशनर का प्रयोग करें।

5. अधिक केमिकल वाले सौंदर्य प्रसाधनों के उपयोग से बचें। 

6. हर्बल उत्पाद प्रयोग में लाएं।

•  मूत्र संबंधी समस्याएं– पेल्विक फ्लोर व्यायाम करें, इससे पेल्विक मसल्स सुदृढ़ होती हैं। इसके लिए योनि - द्वार को संकुचित करना, दो सेकंड के लिए रोकना और फिर ढीला छोड़ देना उपयुक्त व्यायाम है।

• ऑस्टियोपोरोसिस / जोड़ों में दर्द -

1. वेट वेयरिंग एक्सरसाइज करें ।

2. आहार में कैल्शियम युक्त पदार्थों का सेवन करें जैसे - डेयरी उत्पाद, नट्स, केला इत्यादि ।

3. विटामिन डी की पूर्ति हेतु गुनगुनी धूप में कुछ समय अवश्य बिताएं। इसके अतिरिक्त आहार में दूध –दही, अंडा मछली, गाजर, सोया उत्पाद, मखाने व कॉड लीवर ऑयल भी इसके अच्छे स्रोत हैं ।

4. इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने हेतु नियमित व्यायाम, विटामिंस व मिनरल्स युक्त आहार, तनाव-मुक्त जीवन, समय-समय पर उपवास भी सहायक भूमिका निभाते हैं। रात में सोते समय गर्म दूध के साथ शहद लेकर सोने से भी फायदा होता है क्योंकि शहद में कई एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं और हमारे शरीर, बालों व त्वचा पर भी इनका अच्छा प्रभाव होता है ।

5. SQUATS और PUSH-UPS  जैसे व्यायाम भी  किए जाएं तो स्त्री के शरीर पर अच्छा प्रभाव डालते हैं। SQUATS तो अंडाशय में रक्त प्रवाह बढ़ाने में भी सहायक माना जाता है।

2. मानसिक समस्याओं हेतु उपाय – 

रजोनिवृत्ति के दौरान होने वाली समस्याओं के निदान हेतु कई विकल्प मौजूद हैं और आवश्यकता पड़ने पर दवाओ द्वारा उपचार भी संभव है, परन्तु मानसिक समस्याओ से उबरने हेतु स्त्री को खुद ही प्रयास करने होंगे।

• सकारात्मक सोच रखें।

• तनाव मुक्त रहने का प्रयास करें।

• प्रकृति के साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करें, इससे मन को सुकून और शांति का अनुभव होता है।

• नियमित व्यायाम योग एवं प्राणायाम को अपनी दिनचर्या में अवश्य शामिल करें।

• ऐसे कार्यों में सहभागिता करें जिनमें आपकी रुचि है जिससे आपको आनंद प्राप्त हो- जैसे संगीत, नृत्य, कला, बागवानी, फोटोग्राफी, भ्रमण इत्यादि।

• एक समय पर एक ही काम पर ध्यान केंद्रित करें। जिससे अनावश्यक तनाव का सामना ना करना पड़े।

• अपनी परेशानी व भावनाएं पति, परिवार जन या खास दोस्तों के साथ साझा करें।

• सामाजिक जीवन समृद्ध करें व बाहरी गतिविधियों में यथासंभव शामिल होने का प्रयास करें। 

• कुछ नया सीखने का प्रयास भी किया जा सकता है जिससे आप खुद को बिजी रख सकें।

• रजोनिवृत्ति के मानसिक लक्षणों से उबरने में सबसे ज्यादा सहायक आपके पति, परिवारजनों दोस्तों का प्यार व सहयोग होता है जिनके सानिध्य में आप खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं।

दवाओं द्वारा उपचार / चिकित्सीय उपचार– 

जिन स्त्रियों में रजोनिवृत्ति के तीक्ष्ण लक्षण उनकी दैनिक क्रियाओं में बाधा डालने लगते हैं, तब योग्य चिकित्सक के परामर्श के बाद हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (HRT) द्वारा इन लक्षणों का निदान संभव है। परंतु इसके कई दुष्प्रभाव हैं, इसलिए अति आवश्यक होने पर ही उपचार लेना चाहिए और बहुत कम समय लेने के बाद इसे बंद कर देना चाहिए।

हार्मोन थेरेपी कब ना लें-

हारमोंस हमारे शरीर पर कई तरह से प्रभाव डालते हैं और कुछ शारीरिक परिस्थितियों में इनका प्रयोग हानिकारक हो सकता है। इसलिए बिना डॉक्टर के परामर्श के किसी तरह का उपचार ना लें। जैसे :

• HRT से एलर्जी

• योनि से असामान्य रक्तस्राव

• डीप वेन थ्रोम्बोसिस (DVT)

• स्तन कैंसर

• लिवर की गंभीर बीमारियां

• गर्भाशय का कैंसर

• हृदय रोग आदि

हार्मोन थेरेपी के फायदे –

• हॉट फ्लैशेज से छुटकारा

• रात्रि में पसीने की समस्या से निदान

• ऑस्टियोपोरोसिस में लाभ

• याददाश्त में सुधार

• आंतों के कैंसर से  बचाव

• योनि शुष्कता में कमी आदि

हार्मोन थेरेपी के साइड इफेक्ट्स -

• स्त्री में मासिक धर्म की तरह रक्त स्राव दोबारा शुरू होना

• स्तनों में दर्द या दूध का स्राव शुरू होना

• शरीर में पानी की अधिकता आदि

हार्मोन थेरेपी के प्रकार – 

लक्षणों के अनुसार यह केवल एस्ट्रोजन या केवल प्रोजेस्ट्रोन या दोनों को सम्मिलित रूप से देना प्रभावी होता है। ज्यादातर एस्ट्रोजन हार्मोन का प्रयोग गोली, पैच, जेल या योनि की क्रीम के रूप में किया जाता है।

उपरोक्त सभी सुझावों का पालन सुनिश्चित करके महिलाएं काफी हद तक रजोनिवृत्ति संबंधित परेशानियों से निजात पा सकती हैं और जीवन के इस दौर का भी खुशी-खुशी सभी के सहयोग से आनंद उठा  सकती हैं।