कभी लोगों के कपड़े सिलकर पैसे कमाती थीं, आज हजारों लड़कियों को बना रही हैं सशक्त, पढ़िए बछेंद्री पाल के जुनून की कहानी

By Ek Baat Bata | Sep 15, 2020

किसी ने सच ही कहा है अगर हौसले बुलंद हों तो सफलता कदम चूमती है, कुछ ऐसी ही कहानी है बछेंद्री पाल की। किसने सोचा था कि उत्तराखंड के एक किसान की बेटी एक दिन विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली भारत की पहली महिला बनेगी। बछेंद्री ने अपने जीवन में बहुत सी कठिनाइओं का सामना किया है लेकिन कभी हार नहीं मानी। माउंट एवरेस्ट को फतेह करने वाली बछेंद्री ना केवल पर्वतारोहियों बल्कि ऐसे सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं जो अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं। आइए जानते हैं बछेंद्री पाल के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें - 

बछेंद्री का जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के नकुरी गाँव में हुआ था। बचपन से ही बछेंद्री खेल-कूद में बहुत आगे रहती थीं। उन्होंने 12 साल की छोटी सी उम्र में ही अपने 10 अन्य सहपाठियों के साथ करीब 13 फ़ीट ऊंची छोटी पर चढ़ाई की थी। बछेंद्री ने अपने जीवन में कई उतर-चढ़ाव देखे हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण वे लोगों के कपड़े सिलती थीं। एक गरीब ग्रामीण परिवार में जन्मी बछेंद्री ने किसी तरह बीएड तक की पढ़ाई पूरी की लेकिन इसके बावजूद उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिली। जहां भी नौकरी मिलती, वहाँ जूनियर स्तर की नौकरी ऑफर की जाती और वेतन भी बहुत कम होता। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपने पर्वतारोही बनने के सपने को पूरा करने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटेनिरिंग (NIM) में दाखिला लिया। 
 
NIM में प्रशिक्षण के दौरान 1982 में एडवांस कैम्प के तौर पर उन्होंने गंगोत्री की 21,900 फुट और रुद्रगैरा की 19,091 फुट की चढ़ाई को पूरा किया। इस कैम्प में बछेंद्री को बतौर इंस्ट्रक्टर अपनी पहली नौकरी मिली थी। हालांकि शिक्षिका बनने की बजाय पर्वतारोही का पेशा अपनाने की वजह से उन्हें अपने परिवार और रिश्तेदारों के विरोध का सामना भी करना पड़ा था। सन 1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। इस अभियान के लिए एक टीम बनाई गई जिसमें बछेंद्री समेत 7 महिलाओं और 11 पुरुषों को शामिल किया गया था। इस टीम ने 23 मई 1984 को दोपहर 1 बजकर 7 मिनट पर 29,028 फुट की ऊंचाई पर एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया था। इसके साथ ही बछेंद्री एवरेस्ट की ऊँचाई को छूने वाली भारत की पहली और दुनिया की 5वीं महिला बन गईं।

बछेंद्री ने माउंट एवरेस्ट पर आरोहण के बाद 1993 में माउंट एवरेस्ट के शिखर तक पहुँचने के लिए सभी 7 महिला पर्वतारोहियों की एक टीम के अभियान का सफलता नेतृत्व किया। इसके बाद 1994 में  उन्होंने 18 राफ्टर्स की एक महिला टीम का नेतृत्व किया और गंगा नदी में हरिद्वार से कलकत्ता तक 2,500 किमी की यात्रा सफलतापूर्वक तय की। 1997 में उन्होंने ट्रांस हिमालयन ट्रेकिंग के लिए भारत के प्रथम सभी महिलाओं के अभियान का सफल नेतृत्व किया। बछेंद्री ने 2008 में अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो पर चढ़ने के लिए सभी महिलाओं के अभियान का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया।बछेंद्री पाल को कई पुरुस्कारों से नवाजा जा चूका है जिनमें प्रतिष्ठित पदम्भूषण, पद्मश्री और अर्जुन अवार्ड भी शामिल हैं। इसके अलावा बछेंद्री का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में भी दर्ज है। बछेंद्री भारत की सभी महिलाओं और पर्वतारोहियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। बछेंद्री महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से लड़कियों को ट्रेनिंग भी देती हैं। वर्तमान समय में बछेंद्री टाटा स्टील कंपनी में कार्यरत हैं जहाँ वे पर्वतारोहण के साथ अन्य रोमांचक अभियानों का प्रशिक्षण देती हैं।