भारत की इन क्रूर और अमानवीय प्रथाओं के बारे में जानकर दंग रह जाएंगे

By Ek Baat Bata | May 22, 2020

भारत में कई ऐसी परम्पराएं हैं,  जो हिंदू और मुस्लिम धर्म में बहुत ही लंबे समय से चली आ रही हैं। आज हम बात करेंगे भारत के हिंदू धर्म की ऐसी परंपराओं के बारे में जो ना जाने कितनी दशकों से चली आ रही हैं। हम यह तो नहीं जानते कि इन कथाओं और परंपराओं का कब निर्माण हुआ और किसने इनका चलन शुरू किया?
 
लेकिन यह कुछ ऐसी परम्पराएं और कथाएं हैं, जो कि इंसान के मानव होने पर सवाल उठाती हैं। अपनी मनमानी चलाने के लिए अगर उसे प्रथा का नाम दे दिया जाए, तो यह कहाँ तक सही है? प्रथाएं और परम्पराएं तो हमें आपस में जोड़े रखने के लिए होती हैं, ना कि हमसे कोई गलत काम करवाने के लिए। ऐसी ही कुछ परम्पराएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे समाज में पनपती जा रही हैं। जो कि मानवता को बहुत ही ज्यादा क्षति पहुंचाती हैं। इसीलिए हम ऐसी कुप्रथाओं के बारे में बात करेंगे जिन्हें मानव जाति को जल्द से जल्द खत्म कर देना चाहिए। क्योंकि यही हमारे समाज और संसार के हित में है।

दहेज प्रथा
 
भारत में सदियों से सामूहिक विवाह की प्रथा चली आ रही है।  इस प्रथा में परिवार वाले लड़का और लड़की ढूंढकर उनका विवाह करवाते हैं। दोनों ही पक्ष काफ़ी रस्में निभाई जाती हैं। लड़की के माता-पिता को विवाह के दौरान वर पक्ष के लोगों को अनमोल तोहफे, धन, ज़मीन, जायदाद जैसी चीज़े देने के चलन होता है। लड़के वाले लोग अपने बेटे के लिए मोलभाव करते हैं। लड़की के परिवार की आर्थिक परिस्थिति ठीक नहीं भी हो, तो भी उन्हें यह सब लड़के वालों को देना ही पड़ता है। अगर लड़की वाले लड़के के परिवार की मांग पूरी नही करते तो लड़के वाले शादी के लिए राजी नही होते। 

जिन माता-पिता के पास सही व्यवस्था नही होती, उनकी बेटी की शादी या तो बहुत देरी से होती है, या वो लड़की कुंवारी रह जाती है। चाहे मध्यम वर्गीय परिवार हो या उच्चवर्गीय सभी इस प्रथा का पालन करना उनकी इच्छा कम मजबूरी ज्यादा होती है। जो माता-पिता अपनी बेटी को दहेज नहीं दे पाते, उसे ससुराल में दहेज के लिए  प्रताड़ित भी किया जाता है। इसी वजह से ना जाने कितनी ही नवविवाहित लड़कियों ने आत्महत्या की हैं, ना जाने कितनी घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं। दहेज़ ना देना पड़े इसलिए कई लोग गर्भ में ही लड़की की भ्रूणहत्या कर देते हैं। जो कि मनुष्य जाति का सबसे बड़ा घोर पाप है।

बलि प्रथा

भारतीय प्रथाओं में से एक बलि प्रथा भी है। जिसे प्रथा नही बल्कि कुप्रथा का नाम देना चाहिए। जानवरों की बलि देने की प्रथा ना जाने कितने लंबे समय से चली आ रही है। जब भी किसी के घर में कोई शुप्रसंग या अच्छा काम होता है, या कोई मन्नत मानी जाती है, या किसी के घर बेटा पैदा होता है तो लोग भगवान का अभिवादन करने के लिए पशुओं की बलि चढ़ाते हैं। यदि हिंदुओं की धार्मिक किताबों को पढ़ा जाए, तो किसी भी किताब में मासूम व असहाय जानवर की बलि चढ़ाने के बारे में नही लिखा। यह घोर अन्याय और मानव जाति में बहुत बड़ा पाप है।

छुआछूत

छूआछूत की प्रथा जो कि कुप्रथाओ में से एक है। भगवान ने जब सृष्टि और इंसान की संरचना कि तो उन्होंने उनके बीच कोई भेदभाव नही किया। बल्कि इंसान ने ही अपनी सहूलियत के हिसाब से जाति और छुआछूत का भेदभाव शुरू कर दिया। इस धरती पर आने के बाद एक दूसरे से भेदभाव करते हैं। जाति का भेदभाव करना बहुत गलत है। इसके कारण लोगों के अंदर एक दूसरे के प्रति हीन भावना आती है।  जो लोग जाति के नाम पर भेदभाव करते हैं उनके खिलाफ कानूनी करवाई कि जा सकती है। लेकिन कई सामाजिक लोग और ऐसे समूह को कोई फर्क नही पड़ता। वो लगतार इस भेदभाव को करते आ रहें हैं। आज भी लोगों के मन में से जातिगत भेदभाव नहीं जा पाई। अभी भी ऊंची जाति और नीची जाति में लोग फर्क समझते हैं। इस कुप्रथा को बंद कर देना ही हमारे समाज के लिए कल्याणकारी साबित होगा।

बाल विवाह

बाल विवाह प्रथा होने के साथ-साथ अमानवीय कार्य करते हुए बच्चों का जीवन खत्म कर देने वाली प्रथा है। इस प्रथा में जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम होती है, चाहे वह लड़का हो या लड़की दोनों को ही बालिग होने से पहले विवाह कर दिया जाता है। जो की एक घोर अपराध है। ऐसी प्रथा के कारण बच्चों का बचपन और जीवन बिल्कुल अंधेरे में चला जाता है। अब बाल विवाह करना एक दंडनीय अपराध बन चुका है। लेकिन आज भी ऐसे कई मां बाप हैं, जो अपनी बेटी की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में ही कर देते हैं। जिसकी वजह से उस लड़की की जिंदगी में कई कठिनाईयां आती हैं। वो शारीरिक, मानसिक रूप से बहुत ही ज्यादा परेशान हो जाती है। साथ ही उसके साथ घरेलू हिंसा और स्वास्थ्य पर प्रभाव होना बहुत ही आम हो जाता है। इसलिए सही समय पर उचित शिक्षा देने के बाद ही लड़की का विवाह किया जाना चाहिए। जिससे कि उसे अपने आने वाले जीवन में परेशानियों का सामना ना करना पड़े ।

सती प्रथा

भारत मे सती प्रथा काफ़ी चलन में थी, हालांकि अब इस प्रथा को बंद कर दिया गया है। इस प्रथा को बंद करवाने का श्रेय राजा राममोहन राय को जाता है। उनके प्रयास से ही इस प्रथा पर रोक लगाई गई। यह प्रथा अन्य प्रथाओं की तरह काफी लंबे समय तक चलन में रही। इसमें महिला को अपने पति के मृत शरीर के साथ ही ज़िंदा जाला दिया जाता था। इस क्रूर प्रथा को आस्था और सौभाग्य से जोड़ दिया जाता था। जो की बिल्कुल गलत और अमानवीय था।